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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पूजयंती जिनं प्रोचे, विमला कमलां प्रति // द्रुतमानीयतां धूपो, गंधपूजां करोम्यहम् // गुण सा पोचे कर्म कुर्वाणा, विना गंधं भवेन्न किम् // जिनेंद्रस्याप्यहो देहे, कापिदुर्गधतास्ति किमा चरित्र / 12 / / एवं हसंती संप्राप्तसाध्वीयुगलकेन सा // भाषिता हेमहाभागे, जिननिंदां करोषि किम् / / || सा मिथ्यादुःकृतं दत्वा, क्षमयामास तत्क्षणात // एवं द्वितीयवेलायामपि तस्यास्तथाभवत् / / तथाच मुदिता चित्ते, तस्मै साध्वीदयाय सा॥ दानं ददौ ततो भोगफलकर्मापि चार्जयत्।। H! मृत्वा सा ते सुता जाता, जिननिंदोत्थकर्मणा // प्राप्तो दुर्गधतादोषो, वारद्वयमभूत्ततः // | दानपुण्यप्रभावेण, राज्यसौख्यमुपेयुषी॥ आरामनंदिनी सेयं, क्रमात्स्वर्गमुपैष्यति // प्राच्यजन्मन्यसौ गंधराजः श्रीहस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, श्रीदत्ताख्यः सुताऽभवत् / * पूजायां क्रियमाणायां, धूपपूजामुना कृता // तेन पुण्यप्रभावेण, प्राज्यराज्यमभूदिदम् // धूपपूजाविशेषेण, प्रभावोऽस्य करेऽभवत् // यथा तव सुता नीरक, तथान्योपि भवत्यतः | श्रुत्वा पूर्वभवं गंधराजो जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादाहतं धर्म, प्रपेदे गुरुसंनिधौ // 13 // 921 // नृपः सिंहस्ततःपाधै, सूरेः संयममग्रहीत् / / गंधराजः पुरंगत्वा, निजराज्यमपालयत् // 4000-46044444 HAKOSS For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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