________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है येन पूर्व प्रभोः स्नात्रं, कृतं तस्य निगद्यते // अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, पुरं पद्मपुराभिधम्॥६॥ गुण आनंदस्तत्र भूपोऽभूदानंद इव मूर्तिमान् // जयंतीनाम तत्पट्टदेवी देवीव रूपतः // 69 / / // 30 // दत्ताख्यः श्रेष्ठीसूस्तस्या, उदरे समवातरत् // स्वप्ने सरोवरं पूर्ण, तूर्गमालोकितं तया 70 ॐ तदैव च तया पृष्टः, स्पष्टमाचष्ट भूपतिः // सांप्रतं विद्यते देवि, लोके दुर्भिक्षमंकथा // 71 // | | सांवत्सरैर्ममाप्यो, प्रोक्तमस्तीति सर्वथा // वृष्टिं न कर्ता पर्जन्यः कार्यो धान्यादिसंग्रहः७२ स्वप्नेनानेन ते देवि, मेघो वृष्टिं करिष्यति / अस्मदीयकुलोत्तमः, पुत्रोऽप्यवतरिष्यति // ततो हृष्टा ययौ देवी, स्वस्थानं समलंकृतम् // तदैव जलदैश्वापि, गगनं समलंकृतम् 74 / / झात्कारं विद्युतश्चक्रुर्घना गर्जितमूर्जितम् / तत्र सर्वत्र देशेऽभून्महावृष्टिर्निरंतरा // 75 // मरसीः सारसैः साराः, सरसा नीरमारमा // वारिदा वारिदानाय, विदुराविवभुस्तदा // 6 // - हृदा तदा नृपो दध्यावहो स्वप्नस्य सत्यता / / भाग्यवत्ताच पुत्रस्यावतीर्णस्य प्रियोदरे 77 अथ पूर्णेषु मासेषु, सा राज्ञी सुषवे सुतम् / / सुंदरं शुभवेलायां, गुगलक्षणसंयुतम् // 79 // // 30 // नृपस्तस्योत्सवं कृत्वा, जनैःप्रमुदितैः समम् / / मेघनाद इति स्वप्नानुसारादभिधां दधौ 79 For Private and Personal Use Only