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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमेण वर्द्धमानोऽथ, स कलाधवत्कलाः॥सकलाः कलयामास, किंतु कालुष्यवर्जितः॥८॥ गुण० तारं तारुण्यसंप्राप्त, मानिनीनां मनोहरम्॥तं वीक्ष्य नृपतिर्दध्यौ, राज्यभारधुरंधरम् // 81 // | चरित्र. // 3 // अदृष्टपलिताः सर्वे, पूर्वजा जगृहुव्रतम् // ईदृशे सति पुत्रे मे, राज्यमेतन्न युज्यते॥२॥ | इति ध्यात्वा नृपःप्रातस्तस्मै राज्यं प्रदाय सः॥दीक्षां गृहीत्वा तपसा, कर्म भित्त्वा शिवं ययौ।। 18| मेघनादमहीपाले, प्रजाः पालयति क्षितो // देशा न मुक्ता मेघेन, काले वृष्टिविधायिना। / कराले ग्रीष्मकालेऽसौ, सिंहनामनरेश्वरम् // देशक्लेशकरं श्रुत्वा, चचाल सह सेनया 85 / / || महाटव्यां गते सैन्ये, जलं प्रापन कश्चन // नदी न निर्झरा नात्र,न कूपोन सरोवरम् // | शुष्ककंठास्तृपाक्रांताः, श्रांता भ्रांता वनेऽखिले // रत्नवं कथयामासुर्जलस्यैव जनास्तदा।। | पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम् // मूढैःपाषाणखंडेषु, रत्नसंज्ञाभिधीयते 88 | | मेघनादस्तदा दध्यौ, मयि सत्यपि संप्रति / / मेघोऽपि न जलं दद्यात्, कथं नाम निरर्थकम् || इति चिंतयति क्षमापे,सैन्योपरि घनो घनः।। वृष्टिं चक्रे मुदा लोको, भूयमेव शशंस तम् 90 // 31 // रिपुं जित्वा सुखेनैव, गत्वासी नगर निजम् / / पप्रच्छ ज्ञानिनं साधुचंद्रं तत्र समागतम्।। For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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