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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अटव्यां मम सैन्यस्योपरिष्टादेव वारिदः॥ वृष्टिं चकार को हेतुरत्र चित्रमिदं महत्॥१२॥ गुण०। मुनिः प्रोचे भवान् पूर्वभवेऽत्र हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, दत्तनामा सुतोऽजनि।। चरित्र. // 3 // विहिता तेन सामग्री, जिनस्य स्नात्रहेतवे॥कालेऽबुधौ स मृत्वाभूस्त्वमानंदनृपांगजः 94 / / के अंतरेऽत्र नृपोऽवादीत्कुत्र तद्धस्तिनापुरम् / / यतः पयोनिधौ गत्वा, मृत्वा चाहमिहाभवम्।। | मुनिर्जगी बहून्यत्र, नगराण्येकनामतः // हस्तिनापुरमन्यत्तदन्यत्र कुरुमंडले // 96 // / उक्तं प्रस्तुतमित्युक्ते, नृपेण मुनिपुंगवः // जगौ फलं जगन्नाथपूजायाः शृणु भूपते // 17 // / पूजाप्रभावतो राज्यं, स्वभावादपि जायते // स्नात्रपूजाविशेषेण जलदस्ते वशंवदः // 9 // 6 तवावतारे दुर्भिक्षवार्तायामपि सर्वतः // वृष्टिं चक्रे घनस्तस्मान्मेघनादाख्यया भवान् 99 / त्वयि पालयति क्षोणी, दुर्भिक्षं न भवेत्स्यचित् // अटव्यां तु तदा वृष्टिवितेने वनदेवतैः॥ IF एकापि पूजा सफला, वह्वीनां किं निगद्यते // विंशतिस्थानकैरर्हन्नेकेनापि च जायते 101 सर्वत्र शस्यते भावः, पुण्यकर्मणि भूपते // भावेनैव घृतेनेव भोज्यं तत्सफलं भवेत् 102 ||32|| - मेघनाद इति श्रुत्वा, स्मृत्वा पूर्वभवं निजम् / मुनिं नत्वा पुनः प्रोचे. विशेषाद्धर्ममादिशा For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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