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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्यायेन पालयामास, स्वजनानंददायकः // राज्यं हरिखि स्वर्गे, सुपतिर्भूमिनायकः // गुण1 अन्यदा ज्ञानिनस्तत्र, महेंद्रप्रभुसूरयः। समायाताः स तानत्वाऽश्री.द्धर्मोपदेशनम् // चरित्र. 107 श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, निजराज्यस्य कारणम् // मूरिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // / श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, हेमवर्णः सुतोऽभवत् // असौ जिनेंद्रपूजायां, पुष्पाणां प्रकरं व्यधात्।।। 18 जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यमिदं तव // पुष्पप्रकरतः पुष्पप्रकरस्ते तदाभवत् // 317 // | भूपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // A मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत्।। चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्युतः // दादशो बहुबुद्धिस्ते, तनयो भूपतेऽभवता / / वस्त्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिर्नृपतेः पुरस्तात् // उक्त्वा विशेषसहितानि तदाक्षतादिपूजाफलानि गदितुं स पुनः प्रवृत्तः॥३९१॥ श्री अंचलगच्छेश श्री माणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्मचरित्रे // 107 महाध्वजाभरणारोपपुष्पगृहपुष्पप्रकरपूजाफल वर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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