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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // स्वर्ग 5 मो. // एण चरित्र : / 108 अक्षतार्चा कृता येन, मंगलाष्टकपूर्वकम् // फलं तस्याश्च वक्ष्यामः, श्रूयतां भविका जनाः। पुरी शुभंकरा तत्र, हरिर्नाम्ना महीपतिः // सौभाग्यदेवी देवी च, देवीवद्युतिशालिनी // | तनुजो धनदत्तस्य, श्रीदस्तत्कुक्षिमागतः॥ समये स तया सूरः पिता चक्रे महोत्सवम् // || कनकध्वज इत्याख्या, कृता तस्य महीभुजा। वर्द्धमानः कलाशाली,क्रमात्तारुण्यमाप सः / / अन्येयुः सहितो मित्रैर्वने क्रीडनसौ ययौ // जिनेंद्रभवनं नेत्रद्रयपीतिकरं नृणाम् // 5 // नत्वा जिनपतिं तत्र, वीक्षमाणो विचित्रताम् // नंतुकाममसौ देवान प्राप्तं स्त्रीवर्गमैक्षत // | तन्मध्ये कन्यका कापि, करस्थितशुकाननम् // पश्यंती तत्र संप्राप्ता, लसल्लावण्यशालिनी अक्षतान ढोकयंती सा, जिनस्य पुरतः स्वयम् // तेनैव ढोकयामास, शुकेनापि विवेकिना / / अक्षतांतः शुकोवक्त्रेणालिखन्मंगलाष्टकम् / ततस्तया समं प्रीत्याऽपाठीज्जिनपतिस्तुतिम्।।।१०८। | अक्षतं यानपात्रं त्वं, वर्तसे भववारिधौ // अक्षतं शिवसौख्यं नस्त्वं देहि परमेश्वर॥ 10 // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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