________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण अन्येयुरागतास्तत्राभयसिंहेति सूरयः // तान्नंतु सपरिवारो, ययौ गीतप्रियो नृपः // 235 // नत्वा श्रुत्वोपदेशं च, पप्रच्छ स्वभवं नृपः॥ प्रोचिरे सूरयस्तं च, पुरतस्तस्य विस्तरात् // चरित्र / 128 हस्तिनागपुरे श्रेष्ठी, धनदत्ताभिधोऽभवत् // शंखनामा सुतस्तस्य, गीतपूजामसौ व्यधात्॥ जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यमभूदिदम्।। गीतपूजाविशेषेण, गीतंसफलतामगात् // | गीताद्गंधर्वमालाप्ता गीतादश्यो गजः कृतः।।अनंतफलमित्याहुर्जिनगीतार्चनं जिनाः // | इंद गीतप्रियः श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे गुरुसंनिधौ // MP मुनि नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवम् // पत्न्यां गंधर्वमालायां, पुत्रं सोममजीजनता पुनःप्राप्तेषु तेष्वेव, सूरींद्रेषु नरेश्वरः // श्रुत्वोपदेशं संप्राप, वैराग्यं पापनाशनम् // 242 // | ततो राज्यं स्वपुत्राय, महोत्सवपुरःसरम् // दत्वा गुरूणां पार्श्वेऽसौ, चारु चारित्रमग्रहीत् // प्रपाल्य निरतीचारं, सारं संयममुज्ज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत्।। | चिरं सुखान्यसो भुकृत्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः // पूर्णः पंचदशोजातस्तनयस्तव भूपते // 7/128 / // इति गीतपूजायां शंखकथा. // For Private and Personal Use Only