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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / एवमेव वदत्यस्मिन्नलिरूपं विहाय सः // तत्क्षणं खेचरो जज्ञे, सर्वालंकारसुंदरः // 18 // गुग०|| विलोक्य विलसत्कांति, तं चित्रादुभूपभूजगौ॥ कस्त्वं भो खेचरं मन्ये, स्पृशद्भिश्चरणैर्भुवम् चरित्र. / 124||| स प्राह शृणु वैताढये, पुरे संगीतनामनि / वर्तते गीतरत्याख्यः, खेचराणां शिरोमणिः // / / जयादेवीप्रसूतास्य, सुता कनकमालिका // मयोढा वेगवन्नाम्ना, मणिचूडस्य सूनुना // / तस्या एवानुजा संप्रत्यस्ति गीतरतेः सुता // बाला गंधर्वमालाख्या, शाला सर्वगुणावले // | वीणायां सुप्रवीणा सा, गीतागमे सुकौशला / / इति प्रतिज्ञामादत्त, सखीवृंदसमक्षकम् // विजेष्यते यो वीणायां, गीतगानेऽपि मां नरः // स खेचरःपरो वास्तु, वरणीयः स एव मे || तत्र विद्याधराः सर्वै, मिलिष्यति महाबलाः॥ अबलाया मनस्तस्या, नजाने को ग्रहीष्यति / अद्य स्वयंवरो भावी, सांप्रतं तत्र पत्तने॥अस्मिन्नवसरे सोऽहं, वेगवानागतो भुवम् // IR अदृश्य एव प्राप्तः प्राक्, पुरंतव मनोहरम् // भक्त्या प्रणतवानस्मि, जिनेंद्रान जिनमंदिरे।।। भवांस्तत्र मया दृष्टो, जितेंद्रमुपवीणयन्। त्वां वीक्ष्य तस्यायोग्योऽयमेवेति हृदि चिंतितम्।। / 124 / नत्वा जिनं त्वामायातमत्र मित्रत्वसस्पृहः / / उपकर्तुमनास्तस्या, विवाहेनाहमागतः // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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