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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / जगी गीतं स्वयं सोऽपि, निजरंगतरंगितः // हंसकोकिलमुख्यानां, जयं कृत्वा स्वकंठतः॥ गुगल अभूत्यवीणो वीणाया, वादनेऽसौ विशेषतः॥अशेषतत्वं वर्णानामज्ञासीद्धMतोयधीः // चरित्र / 123| अन्येद्युः सहितो मित्रैर्गत्वासौ जिनमंदिरम् // जिनं नत्वा प्रमोदेन, पुरो गीतं जगौ प्रभोः // पुनः प्रभुमसौ नत्वा, यावनिजगृहं ययौ। तावदारामिको मालां, ढौकयामास तत्पुरः // चंचचंपकपुष्पाणां मालामालोक्य भूपभूः / इयुं मदनवीरेण, प्रहितं तामतर्कयत् // 179 // | भ्रामंभ्रामं च कुर्वाणं, झंकारान्मधुरस्वम् // हेमवर्णमसौ श्रृंगं, मालास्थितमलोकयत् // 180 // शुका निला सिता हंसाः, भ्रमराः कृष्णवर्णकाः॥ विपरीतमिदं किंतु, येनालिः कनकप्रभः॥ यादृगवर्णास्ति मालासो, तादृश्वर्णो मधुव्रतः॥ सदृशं सदृशेनेदं, संगतं शोभतेऽथवा // एवं तस्मिन्वंदत्येव, भंगो मर्त्यगिरा जगौ // माला गंधर्वमाला सा, वं चास्यां भ्रमरो भव - गंधर्वमाला वरांगी, त्वं चासि कनकप्रभः॥ उभयोर्जायतां योगो, जगदानंदहेतवे // 18 // तच्छ्रुत्वा भूपभूर्दथ्यो, जल्पंतो वीक्षिताः शुकाः॥भ्रमरान पुनः कापि, महदेव कुतूहलम् ||123 // गंधर्वमाला बाला का, कुतस्तस्याश्च संगमः // केवलं भ्रमरो नासो, खेचरो वामरोऽस्तु वा For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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