________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / पृथुप्रमोदपूरेण, पूरितःपृथिवीपतिः // प्रणम्य पितरं पुण्योपदेशं परमं पपौ // 122 // गुण०/ समरोऽपि समायातस्त्वत्र हर्ष दधत्परम्॥ मुनिप्रणम्य शुश्राव,देशनां क्लेशनाशिनीम्॥१२३॥ चरित्र. // 11 // याद्रव्येभवतिमतिथिवारमणीषुरूपयुक्तासु॥सायदिजिनवरधर्मेकरतलमध्यस्थितासिद्धिः // पुरः पूलियते कस्य, सदा कारा वधूरियम्।।वदंतोऽपीति तत्संगमीहते हंत बालिशाः।।१२५॥ 6 परनार्यः परीहार्या, विशेषेण विचक्षणः।। विवेकस्य विनाशाय, विषवल्लीसमा हि याः // 126 / / | समरोऽयाप्तवैराग्यः, क्षमयित्वा नरेश्वरम्।। समर्प्य तत्मियां तस्य, साधोः पार्श्वेऽग्रहीव्रतम् 127 | स्वपुरागमने तातं, निमंत्र्य नृपतिस्ततः।। चलितः पंचगव्यूत्यां, हस्तिनापुरतः स्थितः॥१२॥ तत्रामात्येन स प्रोचे, महाँलाभोऽत्र वर्तते। इदं हि देवरमणोद्यानं देववनोपमम् / / 12 / / / देवतस्य प्रमावेण, नोलूकान चवायसाः।।न करोति तरोमगमपि कश्चन कीनने // 130 // / अत्र कारयितुः पुण्यमिवास्ति जिनमंदिरम् / / दुरंत दुरितं येन दर्शनादपि दूरितम् // 131 // | तनवा प्रभु पार्थ, महालाभोहि गृह्यते / / श्रुत्वेति मुदितो भूपस्तक्षणे चल्तिस्ततः॥१३ // चलध्वजपटं स्वर्णदंड कलशबंधुरम् / / ऊत्तुंगतोरणं सारस्तंभमंडपमंडितम् / / 133 / / For Private and Personal Use Only