________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4000 / धनेश्वरस्य जीवोऽथ तस्याः कुक्षि समागतः।। समये सतया सूतः, पिता चक्रे महोत्सवम्।। गुण० रखाकर इतिप्रीत्या, नाम तस्मै ददौ पिता॥क्रमेण वर्धमानोऽष्टवर्षमानो बभूव सः // 222 चरित्र. // 70 // कलाकलापकौशल्यवल्लीनां च महीरुहः।। न जहार मनः कस्य स प्रशस्यगुणोत्करः।।२२३ / / . इतश्व राजा श्रीचंद्रो, लोकवृत्तबुभुत्सया // निर्यातो नष्टचर्यायामंधकारपटावृतः // 224 // / भ्राम्यस्त्रिकचतुष्केषु, वीक्ष्य प्रेक्षणकं स्थितः॥ नटेन पठितं नाट्ये श्लोकंशुश्राव भूपतिः।। बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् // वने सिंहोमदोन्मतः,शशकेन निपातितः।। / ततो मे मतिमान्मंत्री, निश्चितं कोऽपि वीक्ष्यते।।इति. ध्यायन्नृपो गेहं गत्वा सुष्वाप निद्रया ! प्रातः प्रबुद्धः प्रातस्त्यकार्य कृत्वा नरेश्वरः // ययौ तुरंगमारूदो द्रष्टुं निजसरोवरम् // 228 / | चलचकोरचक्रांगचक्रवाकचयाकुलम् // भ्रमभ्रमरझंकारमुखरीभवदुत्पलम् // 229 // IT प्रसर्पल्लहरीबाहुवल्लरीश्लिष्टपादपम् // वभार प्रीतिसंभारं, कासारं वीक्ष्य भूपतिः // 230 // कासारांतःस्थितं संभं दृष्ट्वा प्रोचे महीपतिः। शण्वंतमंत्रिणः सर्वे, सर्वे लोकाश्च को विदः // 7 // अकृत्वा सलिले पादनिवेशं तीरसंस्थितः।। बध्नाति यः सरस्तंभ, मंतिता तस्य दीयते // 400-AND-*: MARD400- For Private and Personal Use Only