________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **48 * *4GO तौ पोचतुर्मुने कुत्र, दृष्टावावां पुरा त्वया // द्वितीयः साधुरित्याह, ज्ञानमस्य विज़ुभते // * अवधिज्ञानतो वेत्ति, युष्मद्वृत्तमयं मुनिः // कुमारस्तं ततः प्रोचे, चिंतितं मे भविष्यति // चरित्र // 12 // भविष्यति तृतीयेऽन्हि, साधुनेति प्रजल्पिते // कुमारोऽवक् कुतस्तेऽभूद्वैराग्यात्संयमोद्यमः | सोऽवादीन्मालवे देशेऽवंतीनाममहापुरी // अवंतीसेनो भूपालस्तद्भार्या सुरसुंदरी // 140 // सुतोऽस्यामरदत्तोऽभूत, पुत्री चामरसुंदरी // सा संजज्ञे कलाकेलिकलाकेलिकलालया // o आ जन्मतोऽपि संजातमुद्दामद्युतिभासुरम्॥ ललाटे तिलकं तस्या, दिदीपे दीप्रदीपवत् // योग्यं वरं वरीष्यामि, विचिंत्येति विचारवित् // अनवद्यामियं विद्या, सिषेवे प्रीतिकारिणीम्।।। सा विद्यादेवता स्वप्ने, तां प्रति प्रीतिदायकम् // हारकुंडलकोटीरैः, स्वभावोत्थैरलंकृतम् // 18 लसल्लावण्यलीलाढयं नरं निरुपमाकृतिम् / / मां वृणीष्वेति जल्पंतं, दर्शयामास कंचनम्।।युग्मम् / र प्रबुदा स्वप्नदृष्टं तं, नरं निरुपमं श्रिया // स्मारस्मारं स्मराक्रांतमानसा सा व्यचिंतयत् // / यदि द्रक्ष्यामि तादृक्षं, वरिष्यामि ततो वरम् // अन्यथाहं मरिष्यामि, न करिष्ये करग्रहम् // // 9 // वरेषु वीक्ष्यमाणेषु, तातं सा तं न्यवारयत् // अत्याग्रहे बभाषेसा, वरिष्ये वीक्षितं वरम् // RANP40100- 400-*: For Private and Personal Use Only