________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 27 // | व्यवसायादिति प्रोक्ते, तैः पुनर्मुनिरालपत्॥सर्वेषांकि धनंन स्याव्यवसायं प्रकुर्वताम् 35 || गुण० ततस्तेष्वात्तमौनेषु, मुनिःप्रोचे विचक्षणः॥पुण्येन प्राप्यते ह्यर्थस्तस्मात्पुण्यं विधीयते 36 चरित्र. पुण्यादेव समीहितार्थघटना नो पौरुषात्प्राणिनां, यद्भानोभ्रंमतोऽपि नांवरपथे स्यादष्टमः सैंधवः // स्वस्थानात्पदमात्रमप्यचलतो विंध्यस्य चानेकशो, जायंते मदपालिपालितयशःश्रीलंभिन कुंभिनः // 37 // / कुलं वो विमलं लोके, सकला विकला कलाः। प्रासाद इव निःकेतुर्विना पुण्यं न राजते 38 / दानं शीलं तपो भावः,सम्यक्त्वं जिनपूजनम् ॥ध्यानं सामायिकंवापि, किंचित्पुण्यविधीयते / ते प्रोचुस्तद्विचारे च, साधुनोक्ते सुविस्तरे। सुखसाध्यां विधास्यामः:पूजामेकां वयं मुने // / अथ केन प्रकारेण, क्रियते जिनपूजनम्॥ इति पृष्टो मुनिश्रेष्ठःस्पष्टमेवमभाषत // 4 // स्नात्रं विलेपनं वस्त्रयुगलारोपणं तथा ॥वासपुष्पमाल्यवर्णचूर्णानामधिरोपणम् // 42 // // 27 // | महाघजविभूषाणां रोपणं पुष्पवेश्म च // पुष्पाणां प्रकरश्चाग्रे, पुरतो मंगलाष्टकम् // 43 // For Private and Personal Use Only