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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 0-000140- 6 // सर्ग 2 जो॥ चरित्र. // 24 // / तासु कांतासु कांतासु, रममाणस्य भूपतेः // अथ सप्तदशाभूवनंदनाः कृतनंदनाः // 1 // आद्यः प्रथमराजाख्यस्ततःसिंहो हरिगंजः।। पद्मच्छायाकरः शंखोऽनंतो नागदशाहवयः।।२।। 18| अचलो बहुबुद्धिश्च, तारुणस्तु त्रयोदशः // चतुर्दशश्चक्रपाणिः, पूर्णः पंचदशस्तथा // 3 // सोमःसागर इत्येवं, सुता सप्तदश स्मृताः / प्रमोदभेदा इव ते, व्यराजंत नृपालये // 4 // जाते देवांगणे राजपुत्राः सप्तदशापिते // अप्रगम्य प्रभुं पार्श्व, स्तन्यपानं न चक्रिरे // 5 // है तज्ज्ञात्वा कौतुकं विभ्र यन्वहं सकले जने // केली नवर्मागात् , संदेहतिमिरार्यमा॥६॥ मांतःपुरपरीवारो, मुनि नंतुं नृपो ययौ // ददर्श स्वर्णपद्मस्थं, तं सुरासुरासुरसेवितम् // 7 // | स तं प्रदक्षिगीकृत्य, प्रणम्य परमादरात्॥ तद्रकान्यस्तनेत्राजो,निविष्टः शुद्धभूतले॥८॥ 1 बालयोग्यानलंकारान् , विभ्राणा रूपशालिनः॥ पुत्राः सभासरस्यांते, राजहंसा इवाययुः।। ||24 // / देशनां क्लेशनाशाय, मुनिश्चक्रे सुधोपमाम॥अस्मिन्नसारे संसारे, सारोधर्मो विधीयताम् // - 10:OY For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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