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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | किमेतत्कौतुकं चित्ते, चिंतयन्निति सत्वरम् // वस्त्र युग्मं समादाय,स ययौ नृपसंसदि 222 / / गुण पुरो विमुच्य तद्धस्त्रयुग्मं स्वीक्रियतामिति / / कुमारे जल्पतिमापश्चिंतयामास चेतसि 223 चरित्र. // 43 // गृहीत्वा मागधादेव, किमिदं दीयते मम / / मागधश्च तदैवागाद्वसद्धयविभूषितः // 224|| नवीनं घटतीत्येतदिति ध्यात्वा नृपोऽवदत् // किमर्थ क्रियते वत्स, बहुव्यव्ययो वृथा // 8 B वहनि राजकार्याणि, सर्वत्रापि धनव्ययः॥ गृहीताश्च भटाहस्तितुरंगाः कार्यकारकाः / / 226 // || पुत्रोऽवादीदिह द्रव्यव्ययो न क्रियते मया // पृच्छतां कोऽपि केनापि, दत्तं वस्त्रद्वयं मम / / / ततः कुतः समायाति, नवं नवमिदं तव // पुत्रः प्रोवाच संतुष्टा, दत्ते श्री देवता मम 228 | / ततः प्रातः पुनर्वस्त्रद्रयमानेयमुज्वलम् // इत्युक्त्वा स्थापयामास, पूर्वायातं नरेश्वरः॥२२९॥ 18| पुनर्वस्त्रद्रये प्रातः, संप्राप्ते स महीपतिः॥तन्नेपथ्यं स्वयं कृत्वा, कुमारायान्वमन्यत // 230 // 1 महीपालकुमारेंद्रौ, तत्तादृग्वेशवारिणौ // विरेजाते सभामध्ये, धर्मार्थाविव संगतौ // 231 // * आर्थरक्षित इत्याख्या, वहन्नागान्मुनिस्तदा।चतुर्ज्ञानधरस्तं च, वंदितुं भूपतिर्ययौ // 232 // // 43 // कुमारसहितो भूपस्तं नत्वा देशनाम् // श्रुत्वा पप्रच्छ वत्सस्य, किमेवं भाग्यमद्भुतम् 233 For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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