________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथाकृते नृपो रात्रौ, सामंतेभ्यः स्वपाणिना // ददौ कर्पूरमिश्राणि पत्राणि परमादरात् // गुण०। भूपः करतले तस्य, विषं न्यस्य दलैः समम् / / कपूरो गृह्यतां मंत्रिन्. भक्ष्यतामित्यभाषत / / चरित्र // 7 // विषं कर्पूरतां प्राप्तं, भक्षतिस्म स तत्क्षणम् // भूपे चमत्कृतेऽकस्मान्मध्ये कोलाहलोऽभवत् // || आगता त्वरितं दासी, स्माह स्वामिन्निशम्यताम् // देवी चंद्रावती वाद, व्याकुला वर्ततेऽधुना | चपेट्या हता केनाप्पदृष्टान्येन तल्पतः // पतिता पृथिवीपीठे, लुति अहिलेव सा // 32 // | नृपेण शीघ्रमागत्य, गुगुलोद्ग्राहपूर्वकम्।। भाषिता सा रुषा तस्मै, चपेटां दातुमुद्यता।।३२२॥ / सा कथंचिन्नौद्धा, भाषिता मंत्रवादिभिः॥ भूतो वा राक्षसो वापि, शाकिनी चेति वादिभिः॥ 3 सारुषा नृपति प्रोचे, रे कृतघ्नशिरोमणे॥ मायया वचसैतस्या मंत्री हंतुं विचिंतितः // 324 // मया क रतां नीतं, पूर्व भस्म ततो विषम् // अहं तवास्मि रे राज्याधिष्टात्री कुलदेवता॥ अर्थतां न हि मोक्ष्यामि, हनिष्याम्येव सर्वथा // ततो मंत्रिणमाकार्य, भूपः क्षमयतिस्म तम् / / तामप्यलुव्यत्पादयुगले मंत्रिणो मुहुः // क्षमिता बहुमानेन, सा ततो देवता गता ॥३२७॥७वा जातायामथ सज्जायां, देव्या हृष्टो जनोऽखिलः॥ मंत्रिणं श्लाघयामास, विदधानो महोत्सवमा For Private and Personal Use Only