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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 1 / रत्नवत्यप्यमान्या सा, मान्या राज्ञा ततः कृता // मंत्री विचिंतितश्चित्ते, जीवितादपि वल्लभः / श्रीमंतोऽजितसिंहाख्याः, सूरयो ज्ञानिनोन्यदा। संप्राप्तास्तान्नृपो नंतुं, मंत्रिणासहितो ययौ।। चरित्र श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, मंत्रिणो भाग्यकारणम् // मुनिः भवं प्रोचे. नगरे हस्तिनापुरे॥३३१॥ श्रेष्ठिनोधनदत्तस्य, धनेश्वरसुतोऽभवत् // जिनपूजामुना चक्रे, बांधवैः सह संमदात् // 332 // कर्पूरार्चा विशेषेण, कर्पूरो विषभस्मनी // जातः क्रमेण राज्यं च प्राज्यमस्य भविष्यति / / मंत्री पूर्वभवं श्रुत्वा, जातिस्मरणमाप सः॥ विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ।।३३४॥ मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वमंत्रिणे // निरपत्यो नृपः पार्क, गुरोः संयममग्रहीत M अथ रत्नाकसेराजा, पालयित्वा भुवं चिरम् // पुत्राय रत्नदेवाय, राज्यं दत्वागृहीव्रतम् // पाल्य संयम भव्यभावेन स मुनीश्वरः // विहितानशनः प्रांते सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सुखान्यसो भुक्तवा, देवलोकात्ततच्युतः // अष्टमोऽनंतनामासीत्तनयस्तव भूपते // * पुष्पादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यमुंदररुचिर्नृपतेः पुरस्तात् // / उक्त्वा विशेषसहितानि मुनिर्धजाद्यारोपादिपूजनफलं गदितुं प्रवृत्तः // 339 // इति श्री अंचलगच्छेशमाणिक्यसुंदरसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे पुष्पमाल्यवर्णकचूर्गारोपणपूजनफलवर्णनो नाम तृतीयः स्वर्गः For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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