________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वर्ग 4 थो. गुण० चरित्र // // ध्वजारोपः कृतो येन, फलं तस्य निगद्यते / अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, पुरमिंद्रपुरं परम् // 1 // तत्राभूदेवचंद्राख्यो, भूपो देवेंद्रसन्निभः॥ देवी चदेविला तस्य, देवकांतेव दिव्यरुक् // 2 // | कनकस्य ततो जीवस्तस्याः कुक्षि समागतः।। समये स तया सूतः, पिता चक्रे महोत्सवम्।। गरुडध्वजइत्याख्या तरय जाता मनोरमा / तस्मै प्रवर्द्धमानाय, राज्यं दत्वा पिता मृतः॥ | गरुडध्वजभूपालेऽन्यदा संसदि संस्थिते॥ वेत्रिप्रवेशितो दूतो, नत्वा कार्यमभाषत // 5 // 10 अस्ति पंचालदेशेषु, पुरं शिवपुराभिधम् // तत्र श्रीशंकरो राजा, शिवचंद्रास्य तु प्रिया॥६॥ / तत्कुक्षिपद्मिनीहंसी, कन्या नाम्ना सरस्वती॥ सरस्वतीव संजातसर्वशास्त्रार्थसंग्रहा // 7 // पाणिग्रहमकुर्वाणा तारतारुण्यशालिनी // प्रोचे सवित्र्या स्वोत्संगे, निवेश्य निजनंदिनी // 1 // न मन्यसे कुतो हेतोः, पाणिग्रहणमंगजे // यचित्ते वर्तते तन्मे, प्रकाशय सरस्वति // 9 // सा पोचे किं कृतेनापि, पाणिग्रहणकर्मणा / / कांता यदक्ति तत्कार्य, भर्ता न कुरुते यदि // 0 // For Private and Personal Use Only