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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण धन्या इमास्तिरश्चोऽपि, यासामेवं वशंवदः॥ ददाति वानरः कांतः, कामिताःकुसुमस्रजः 93 सोमश्रीस्ता प्रति प्रोचे, किमेवं कथ्यते हलाः॥गुणा एव विलोक्यंते,नारीणां भर्तृमानदाः चरित्र // 59 // यावद्विवाहो मे जातो, हे सख्यः किल तावता॥आनाययिष्यते भा. माला मेरुतरोरपि। सख्यस्ता प्राचिरे मुग्धे, वक्तुं नो वेत्सि सर्वथा।मानवानां कुतो मेरुस्थितकल्पतरोः स्रजः | तावन्मानं प्रयच्छंति, यावद्युक्तं हि याच्यते॥भतरोऽप्यवमन्यते, त्वयुक्ते ब्रह्मदत्तवत् 97 // 10 को ब्रह्मदत्त इत्युक्ते, प्रोचे पुत्री पुरोधसः॥ पंचालदेशे कांपील्यपुरनस्ति मनोहरम् 98 / / ब्रह्मदत्तोऽभवत्तत्र, चक्री सुत्रामसंनिभः॥ तस्मै तक्षकनागेन, वरो दत्तोऽयमीदृशः // 29 // है। IF सर्वेषामपि जीवानां, भाषांत्वमवभोत्स्यसे॥ यदा वक्ष्यसि चान्यस्मै, तदा मृत्युमवाप्स्यसि॥ 18 अन्यदा ग्रीष्मकालेऽसौ, स्नात्वा विहितभोजनः॥ पुष्पस्त्रश्चंदनालेपशाली तल्पमसेवत॥ / तदा पुष्पवती देवी देवीवाद्भुतरूपभाक् // भद्रासनमलंकृत्य, निविष्टा भूपतेःपुरः॥१०२॥ की चारुकपरकस्तूरिचंदनद्रवभाजनम् // भारपट्टस्थिता गोधा, वीक्ष्य प्राह पतिं प्रति // 103 // // 59 // पतित्वा भारपट्टात्त्वं, चंदनवभाजने // आलेपय ममाप्यंग, स्वांगसंगेन हेप्रिय // 10 // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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