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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / इति श्रुत्वा च तदाषां,परिज्ञायचभूपतिः॥हास्यं चकार गोधाया, अप्यहो कीदृशी स्पृहा॥ गुण नृपं पुष्पवती पोचे, तद्दृष्ट्वा स्वात्मशंकिता। हास्ये प्राणेश को हेतुः स जगौ नास्तिकश्चन चरित्र. // 60 // मेघाविनां विना हेतुं, हास्यं न क्यापि जायते॥ तदापास्यामि भोक्ष्ये च,यदात्वं कथयिष्यसि।। बालसखित्वमकारणहास्यं, स्त्रीषु विवादमसज्जनसेवा // गर्दभयानमसंस्कृतवाक्यं, षट्सु नरा लघुतामुपयांति // 108 // इत्याग्रहपस देवी, पुनः प्राह महीपतिः॥ उक्तेऽस्मिन्न गुणः कोऽपि, प्रत्युतापाय एव हि // सा प्रोचे तत्करिष्यामि, निश्चित काष्ठभक्षणम् // भूपो जगौ भविष्यामि, तदहमपि पृष्ठगः / ॐ ततः सा चलिता शीघं, काष्ठभक्षणहेतवे।रुदता परिखारेण, सहिता साश्रुलोचनम् // 11 // मंत्रिभूपालसामंतैर्यिमाणो महाग्रहात्। चक्रयप्यचालीत्तत्स्नेहपाशवद्धपतत्रिवत् // 12 // पातश्चतुष्पथे चक्री, सशोकैर्वीक्षितो जनैः। ततः शृण्वति भूपे च,छागी छागंजगाविति।। / जातोऽस्ति दोहदो मेऽद्य, हृद्यं शकटसंचयात् ॥आनीय देहि त्वं मह्यं, यवपूलकपंचकम्॥ // 6 // स जगौ शकटा एते, राज्ञस्तुरगहेतवे॥नीयवैभृता यांति गृहणन मार्यो जनैरहम् 115 / For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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