________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्प द्रुमो युक्तमनेन साम्यं, नाप्नोत्ययं पल्लवधूननेन // 2 // वीरो जिनः सत्यपुरावतारः, सारश्रियं यच्छतु वांछितां वः॥ चरीत्र. यो वर्द्धमानां कमलां विधाय, पितु हेऽभूद्भुवि वर्द्धमानः // 3 // ( आर्यावृत्तम् ) श्रीअंचलगच्छेशाः, श्रीमंतो मेरुतुंगसूरीशाः / / विजयतां यदाण्या, सिता मिता संयुता पयसा // 4 // देवगुरुधर्मतत्वत्रयीसमासेवनेन सम्यक्त्वम् / / तेनैव देवपूजा, मूलं तस्यापि विज्ञेया // 5 // (स्वागतावृत्तम ) वर्तते यदि मनोरथमाला, राज्यऋद्धिरमणीषु विशाला // ईप्सिता यदि मनोज्ञतनूजास्तत्कुरुध्वमनिशं जिनपूजां // 6 // _ (अनुष्टुप्वृत्तम् ) | मोक्षसाख्यं फलं मुख्यं, गाणं राज्यादिकं पुनः॥ देवपूजाभिधा कल्पवली दत्तेऽन्वहं नृणाम् / पक्षा For Private and Personal Use Only