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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अक्षतार्चा कृता पूर्व, मंगलाष्टकपूर्वकम् / / अक्षतं राज्यमेताभिः, सह प्राप्तं त्वया ततः // गुण० नृपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिमंनिधौ।।६०॥ चरित्र. / 1130/- मुनि नत्वा गृहं गत्वा, मित्रं धनपतेः सुतम् // कृत्वामौ पुण्यकर्माणि, कुर्वन् राज्यमपालयत् / मित्रस्य शुकजीवत्वाच्छुकनाम ददौ नृपः॥ लोकैरपि तथा ख्यातो, दक्षोऽयं पुण्यकर्मणि / | समये स्वस्य पुत्राय, राज्यं दत्वा निजं नृपः॥ तेषामेव गुरूणां स, पार्श्व संयममाददे // प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनःप्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // | चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्युतः // भूपते तनयस्तेऽभूत्तारणाख्यः त्रयोदशः।। // इति अक्षतमंगलपूजायां श्रीदकथा. // धूपपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते / / अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, ताम्रलिप्त्याख्यया पुरी // 1 | सिंहो महीपतिस्तत्र, सिंहवद्धिक्रमास्पदम् // देवी दुर्लभदेवी च, देवीव दुर्लभा परैः॥६॥ 113 // सुबुद्धि-सचिवस्तस्य बुद्धिहंसीसरोवरम् // हंसी नाम्ना प्रिया तस्य, प्रशस्यगुणशालिनी॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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