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पदार्थान्वयः-पढम-प्रथम, पोरिसि-पौरुषी अर्थात् प्रहर में, सज्झायं-मुनि स्वाध्याय करे, बिइयं-दूसरी पौरुषी में, झाणं-ध्यान, झियायई-को आराधना करे, तइयाए-तीसरी पौरुषी में, तु-और, निद्दमोक्खं-निद्रा को मुक्त करे, अर्थात् शयन करे, सज्झायं-स्वाध्याय, तु-और, चउत्थिए-चौथी पौरुषी में करे। ___ मूलार्थ-प्रथम पौरुषी अर्थात् प्रहर में मुनि स्वाध्याय करे, दूसरी पौरुषी में ध्यान की आराधना करे और तीसरी में निद्रा को मुक्त करे और चौथी पौरुषी में स्वाध्याय करे।
टीका-प्रतिक्रमण के पश्चात् काल की प्रतिलेखना करके फिर एक प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय करे, जब स्वाध्याय का समय पूर्ण हो जाए, तब द्वितीय पौरुषी में ध्यान करे। 'ध्यान' शब्द से यहां पर सूत्रार्थ का चिन्तन करना. अथवा धर्म और शुक्ल. ध्यान आदि करना अभिप्रेत है, जिसे लोग योगाभ्यास कहते हैं।
तात्पर्य यह है कि द्वितीय पौरुषी के समय को सूत्रार्थ-चिन्तन में या कायोत्सर्ग करके आत्म-चिन्तन में व्यतीत करे। जब तीसरी पौरुषी का समय आए, तब निद्रा लेवे-शयन करे, एवं तृतीय पौरुषी के व्यतीत होने पर चतुर्थ पौरुषी में उठकर फिर स्वाध्याय में लग जाए। इस प्रकार प्रस्तुत गाथा में रात्रि-चर्या का वर्णन किया गया है।
अब चतुर्थ पौरुषी के विषय में कुछ विशेष कहते हैं, यथा - . पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया ।
सज्झायं तु तओ कुज्जा, अबोहन्तो असंजए ॥ ४५ ॥
पौरुष्यां चतुर्थ्यां, कालं तु । प्रतिलेख्य ।
स्वाध्यायं तु ततः कुर्यात्, अबोधयन्नसंयतान् ॥ ४५ ॥ पदार्थान्वयः-पोरिसीए-पौरुषी, चउत्थीए-चतुर्थी में, कालं-काल की, पडिलेहिया-प्रतिलेखना करके, तओ-तदनन्तर, सज्झायं-स्वाध्याय, कुज्जा-करे, तु-किन्तु, असंजए-असंयतों को, अबोहन्तो-न जगाता हुआ।
. मूलार्थ-चतुर्थ पौरुषी में काल की प्रतिलेखना करके स्वाध्याय करे, परन्तु असंयत आत्माओं को न जगाता हुआ ही स्वाध्याय करे। ____टीका-प्रस्तुत गाथा में बताया गया है कि तृतीय पौरुषी के समाप्त होने पर और चतुर्थ के आरम्भ में अपने आसन से उठकर साधु सबसे पहले काल की प्रतिलेखना करे और तत्पश्चात् स्वाध्याय करने लग जाए, परन्तु उठते हुए या स्वाध्याय करते हुए अन्य असंयतों अर्थात् गृहस्थों को न जगाए, अर्थात् उसके उठने या स्वाध्याय करने से किसी दूसरे गृहस्थ की निद्रा भंग न हो, इस प्रकार उसे उठना और स्वाध्याय करना चाहिए। जैसे कि-इतने उच्च स्वर से स्वाध्याय न करे, जिससे कि समीप में सोये हुए गृहस्थ जाग उठे। कारण यह है कि बहुत से ऐसे पामर प्राणी होते हैं जो कि जागने पर अनेक प्रकार
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [५३] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं