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को प्राप्त करता. है? काउस्सग्गेणं-कायोत्सर्ग से, तीय-अतीतकाल, पडुप्पन्नं-वर्तमानकाल के, पायच्छित्तं-प्रायश्चित को, विसोहेइ-विशोधन करता है, य-फिर, विसुद्ध पायच्छित्ते-प्रायश्चित्त से विशुद्ध हुआ, जीवे-जीव, निव्वुयहियए-चिन्तारहित हृदय वाला, ओहरियभरुव्व-भारवहे-उतार दिया है भार जिसने ऐसे भारवाहक की तरह, पसत्थज्झाणोवगए-प्रशस्त ध्यानयुक्त, सुहं सुहेणं-सुखपूर्वक, विहरइ-विचरता है।
मूलार्थ-(प्रश्न)-हे भगवन् ! कायोत्सर्ग से जीव किस गुण की प्राप्ति करता है?
उत्तर-कायोत्सर्ग से साधक अतीत और वर्तमान काल के अतिचारों का शोधन करता है। फिर प्रायश्चित से विशुद्ध होकर दूर हो गया है भार जिसका ऐसे शांत हृदय-भारवाहक की भांति चिन्ता-रहित होकर प्रशस्त ध्यान में लगा हुआ सुख-पूर्वक विचरता है। ___टीका-कायोत्सर्ग का फल वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि कायोत्सर्ग अर्थात् ध्यानावस्था में शरीर द्वारा समस्त चेष्टाओं का परित्याग कर देने पर चिरकाल के लगे हुए और वर्तमान काल में लग रहे अतिचारों अर्थात् दोषों की विशुद्धि होती है, अर्थात् प्रमाद के कारण आत्मा के साथ लगे हुए अतीत और वर्तमान कालीन दोष दूर होते हैं। उन दोषों के दूर हो जाने पर यह जीव इस प्रकार हलका और शान्त हो जाता है जिस प्रकार सिर पर से भार के उतर जाने से एक भार-वाहक सुखी हो जाता है। तदनन्तर वह ध्यान-पूर्वक होकर सुख-पूर्वक इस संसार में विचरता है।
इस प्रकार कायोत्सर्ग का विशिष्ट फल वर्णन किया गया। अब छठे प्रत्याख्यान नामक आवश्यक का फल बताते हैं - . .. पच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ?
पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरंभइ। (पच्चखाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ। इच्छानिरोह गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ ॥ १३ ॥)
प्रत्याख्यानेन भदन्त ! जीवः किं जनयति ?
प्रत्याख्यानेनास्रव-द्वाराणि निरुणद्धि। प्रत्याख्यानेन इच्छानिरोधं जनयति। इच्छानिरोधगतश्च जीवः सर्वद्रव्येषु विनीततृष्णः शीतीभूतो विहरति ॥ १३ ॥ __पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन्, पच्चखाणेणं-प्रत्याख्यान से, जीवे-जीव, किं जणयइ-किस गुण की प्राप्ति करता है, पच्चक्खाणेणं-प्रत्याख्यान से, आसवदाराई-आस्रव द्वारों को, निरंभइ-रोक देता है, इच्छानिरोह-इच्छा-निरोध को, जणयइ-उत्पन्न करता है, य-पुनः, इच्छानिरोहं गए-इच्छा-निरोध को प्राप्त हुआ, जीवे-जीव, सव्वदव्वेसु-सर्व द्रव्यों में, विणीयतण्हे-तृष्णा से रहित और, सीइभूए-शीतलीभूत होकर, विहरइ-विचरता है। ___ मूलार्थ-(प्रश्न )-हे भगवन् ! प्रत्याख्यान करने से इस जीव को क्या फल मिलता है? १. बृहद्वृत्ति में तो इतना ही पाठ है-परन्तु ब्रैकेट में दिया गया पाठ अन्य हस्तलिखित प्रतियों में उपलब्ध होता है।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [११५] सम्मत्तपरक्कम एगूणतीसइमं अज्झयणं