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के लिए रुचि ही विशेष कारण है, अतः जैसी इच्छा हो वैसा ही, अभिग्रह धारण किया जा सकता है। अब पर्यायसम्बन्धी ऊनोदरी-तप का वर्णन करते हैं -
दव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहिं ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥ २४ ॥
द्रव्ये क्षेत्रे काले, भावे चाख्यातास्तु ये भावाः ।
एतैरवमचरकः, पर्यवचरको भवेद् भिक्षुः ॥ १४ ॥ पदार्थान्वयः-दव्वे-द्रव्य में, खेत्ते-क्षेत्र में, काले-काल में, य-और, भावम्मि-भाव में, जे-जो, भावा-भाव, आहिया-कथन किए हैं, एएहिं-इन भावों से, ओमचरओ-अवमचरक मुनि, पज्जवचरओ-पर्यवचरक, भिक्खू-भिक्षु, भवे-होता है।
मूलार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो भाव वर्णन किए गए हैं, उन भावों से अवम चरने वाले भिक्षु को पर्यवचरक भिक्षु कहा जाता है। ___टीका-प्रस्तुत गाथा में पर्यव-अवमौदर्य का वर्णन किया गया है। यथा-अशनादि द्रव्य में, ग्रामादि क्षेत्रों में, पौरुष्यादि काल में और स्त्री-पुरुषादि भाव में जो एक सिक्थ अर्थात् एक ग्रास न्यूनादि भाव वर्णन किए गए हैं उन सर्व भावों से युक्त होकर जो विचरता है उसे पर्यवचरक भिक्षु अर्थात् पर्याय-ऊनोदरी-तप करने वाला कहते हैं। सारांश यह है कि जो भिक्षु द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से उक्त चारों अभिग्रहों से युक्त होकर विचरता है उसको पर्यवचर-ऊनोदरी-तप वाला कहते हैं और इस प्रकार के तप का नाम ऊनोदरी-पर्यव-तप है।
- यदि कोई यह शंका करे कि कम से कम एक ग्रास की न्यूनता रखने से द्रव्य ऊनोदरी तप तो हो सकता है परन्तु क्षेत्र-ग्रामादि, काल-पौरुषी आदि और भाव-स्त्री आदि, इनका अवमौदर्य किस प्रकार हो सकता है। इसका समाधान यह है कि, विशिष्ट अभिग्रह आदि के धारण करने से इनके द्वारा भी अवमौदर्य किया जा सकता है। जिसकी प्रधानता होगी, उसकी अपेक्षा से ही अवमौदर्य का प्रतिपादन किया जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि जहां पर द्रव्य से अवमौदर्य नहीं, वहां पर क्षेत्रादि से किया जा सकता है।
अब भिक्षाचरी के विषय में कहते हैं - - अट्ठविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा ।
अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥ २५ ॥
अष्टविधगोचराग्रं तु, तथा सप्तैवैषणाः ।
अभिग्रहाश्च येऽन्ये, भिक्षाचर्यायामाख्याताः ॥ २५ ॥ पदार्थान्वयः-अट्ठविह-अष्टविध, गोयरग्गं-गोचराग्र-प्रधान गोचरी, तु-उत्तर-भेद की अपेक्षा से समुच्चय अर्थ में है, तहा-उसी प्रकार, सत्तेव-सात ही, एसणा-एषणाएं, य-और, जे-जो,
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ १८७] तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं