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लोहिताक्ष रत्न, २७. मरकत और मसारगल्ल, २८. भुजमोचक, २९. इन्द्रनील, तथा ३०. चन्दन, गेरुक, हंसगर्भ, ३१. पुलक, ३२. सौगन्धिक, ३३. चन्द्रप्रभ, ३४. वैडूर्य, ३५. जलकान्त और ३६. सूर्यकान्तमणि-इस प्रकार ये ३६ भेद हैं।
टीका-इन चार गाथाओं में खर पृथिवी के उत्तर-भेदों का वर्णन किया गया है। ये कुल भेद सामान्य रूप से ३६ हैं जिनका ऊपर निर्देश किया गया है। पृथिवी से यहां पर समुच्चयरूप शुद्ध पृथिवी का ग्रहण समझना चाहिए। बालु-रेत को कहते हैं। लवण से, प्रायः समुद्रलवणादि सभी प्रकार के लवणों का ग्रहण है। क्षारमृत्तिका-कल्लर आदि। तथा लोहा, ताम्बा, सीसा, चांदी और सुवर्णादि सब पृथिवीकाय के ही भेद हैं। अन्तर सिर्फ इतना ही है कि मल के दूर हो जाने से ये अपने शुद्ध रूप में प्रकट हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि यावन्मात्र धातुएं उपलब्ध होती हैं या होंगी वे सब पृथिवीकाय में ही समाविष्ट हैं। इसी प्रकार वज्र-हीरकादि नानाविध रत्नों को भी पृथिवीकाय के ही अन्तर्भूत समझना चाहिए। हरिताल, पीली और श्वेत दो प्रकार की होती है। इनमें पहली वर्कीया, तवकिया और दूसरी गोदन्ती के नाम से प्रसिद्ध है। हिंगुल-शिंगरफ का नाम है। मनः शिला-मनसिल प्रसिद्ध ही है। प्रवाल का दूसरा नाम विद्रुम है जिसे आम लोग मूंगा कहते हैं। सासक-कोई धातुविशेष है। अंजन-सुरमे का नाम है। यह भी श्वेत और काला दो प्रकार का होता है। अभ्रपटल-अभ्रक को कहते हैं। इसी प्रकार अन्य भेदों को भी समझ लेना चाहिए। ___जैसे कि ऊपर कहा गया है कि सब प्रकार के रत्नों का भी पृथिवीकाय में ही समावेश है, उसी सिद्धान्त से यहां पर गोमेदादि रत्नों का भी उल्लेख किया गया है। सारांश यह है कि जो पदार्थ किसी आकर अर्थात् खान से उत्पन्न होने वाला है वह पृथिवी का ही भेद है। इस प्रकार प्रथम गाथा में कहे गए पृथिवी आदि १४, दूसरी गाथा में वर्णन किए गए हरिताल आदि ८, तीसरी और चौथी में उल्लेख किए गए गोमेद आदि १४, इस प्रकार खर पृथिवी के कुल ३६ भेद हैं। ,.
इस प्रकार बादर पृथिवीकाय और उसके उत्तर भेदों का निरूपण करने के अनन्तर अब उक्त विषय का उपसंहार करते हुए सूक्ष्म पृथिवीकाय का वर्णन करते हैं
एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहिया । एगविहमनाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ ७७ ॥ एते खरपृथिव्याः, भेदाः षट्त्रिंशदाख्याताः ।
एकविधा अनानात्वाः, सूक्ष्मास्तत्र व्याख्याताः ॥ ७७ ॥. पदार्थान्वयः-एए-ये सब, खरपुढवीए-कठिन पृथिवीरूप जीवों के, भेया-भेद, छत्तीसं-छत्तीस, आहिया-कथन किए गए हैं, और, एगविहं-एक ही प्रकार, अनाणत्ता-नाना प्रकार से रहित, तत्थ-उन सूक्ष्म बादर में, सुहुमा-सूक्ष्म भेद, वियाहिया-कथन किया गया है।
मूलार्थ-उक्त छत्तीस भेद खर पृथिवीकाय के वर्णन किए गए हैं, परन्तु उक्त दोनों भेदों में सूक्ष्मकाय का केवल एक ही भेद कथन किया गया है। ____टीका-बादर पृथिवीकाय के ३६ भेदों का वर्णन कर दिया गया है, परन्तु सूक्ष्म और इन दोनों
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३९६] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं