Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 460
________________ २. अकर्मभूमिक-जहां पर असि, मसि, कृषि आदि कर्मों का अभाव है, किन्तु कल्पवृक्षों पर ही जहां के जीवन निर्भर हों, उसे अकर्मभूमि कहा है, उस भूमि के जीव अकर्मभूमिक कहलाते हैं। ३. अन्तर-द्वीपक-जो समुद्रीय द्वीपों के मध्य में उत्पन्न होने वाले हैं उनको अन्तरद्वीपक मनुष्य कहते हैं। अब इनके संख्यागत भेदों का उल्लेख करते हैं, यथा पन्नरसतीसविहा, भेया अट्ठवीसई । संखा उ कमसो तेसिं, इइ एसा वियाहिया ॥ १९६ ॥ पञ्चदशत्रिंशद्विधाः, भेदा अष्टविंशतिः । सङ्ख्या तु क्रमशस्तेषाम्, इत्येषा व्याख्याता ॥ १९६ ॥ पदार्थान्वयः-पन्नरस-पन्द्रह भेद, तीसविहा-तीस भेद, अट्ठवीसई-अट्ठाईस, भेया-भेद, उ-पुनः, संखा-संख्या, तेसिं-उनकी, कमसो-क्रम से, इइ-इस प्रकार, एसा-यह, वियाहिया-कथन की गई है। मूलार्थ-१५ भेद, ३० भेद और २८ भेद-इस प्रकार यह क्रमपूर्वक इनकी संख्या का विधान किया गया है, अर्थात् कर्मभूमि के १५, अकर्म भूमि के ३० और अन्तरद्वीप के २८ भेद हैं। ___टीका-इस गाथा में मनुष्यों के संख्यागत भेदों का वर्णन किया गया है। वह संख्या अनुक्रम से-१५, ३० और २८ है। १. एक भरत, एक ऐरावत और एक महाविदेह, ये तीनों क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं, तथा दो भरत, दो ऐरावत और दो महाविदेह ये छह क्षेत्र धातकी-खंड द्वीप में हैं और इसी प्रकार ये छहों क्षेत्र पुष्करार्द्ध नामक द्वीप में हैं। इस रीति से पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच महाविदेह, ऐसे १५ भेद कर्मभूमि के प्रतिपादन किए गए हैं। . २. अकर्मभूमि के ३० भेद हैं, अर्थात् अकर्मभूमि में ३० क्षेत्र हैं। जैसे कि-हैमवत, हैरण्यवत, हरिवास-हरिवर्ष, रम्यकवर्ष और देवकुरु, ये छओं क्षेत्र जम्बूद्वीप में हैं। तथा ये दो-दो धातकी-खंड में और दो-दो ही पुष्करार्द्धद्वीप में हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप के ६ और धातकीखण्ड के १२ तथा पुष्करार्द्धद्वीप के १२, सब मिलाकर ३० भेद अकर्मभूमि अर्थात् भोगभूमि के हैं। इनमें केवल युगलियों की ही उत्पत्ति होती है और वे अपनी सम्पूर्ण अभिलाषाओं को कल्पवृक्षों से पूर्ण कर लेते हैं। ___अन्तरद्वीपक-क्षेत्रों का विधान इस प्रकार से है-हिमवन्त पर्वत के पूर्वा-पर और विदिशा में प्रसृत कोटियों (दाढ़ाओं) की सीमा पर लवण-समुद्र में तीन-तीन सौ योजन की दूरी पर और इतने ही विस्तार वाले चार द्वीप हैं। तात्पर्य यह है कि क्षुल्लक हिमवन्त पर्वत के पूर्व और पश्चिम के अन्त में दो-दो दाढ़ें अर्थात् दोनों पर्वतों की चार दाढ़ें और प्रत्येक दाढ़ में सात-सात द्वीप हैं। इस प्रकार ७४४=२८ अन्तरद्वीप होते हैं। इसी भांति शिखरिणी पर्वत के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए अर्थात् उसकी भी चार दाढ़ें हैं और प्रत्येक दाढ़ पर सात-सात द्वीप हैं, जो कि वे भी संकलना से २८ होते हैं। इस प्रकार कुल २८+२८-५६ भेद अन्तरद्वीप के होते हैं। इन द्वीपों की नामावली इस प्रकार है : उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४५१] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं

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