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ठिई-स्थिति, भवे-होती है।
मूलार्थ-प्रथम त्रिक के तीसरे अर्थात् पन्द्रहवें देवलोक में देवों की जघन्य आयु २४ सागरोपम की और उत्कृष्ट २५ सागरोपम की कही गई है। ____टीका-इस गाथा में प्रथम त्रिक के तीसरे देवलोक में रहने वाले देवों की आयु का वर्णन किया गया है। इस प्रकार यह प्रथम त्रिक का वर्णन समाप्त हुआ। अब दूसरे त्रिक के विषय में कहते हैं, यथा
छव्वीस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं, सागरा पणुवीसई ॥ २३६ ॥ षड्विंशतिः सागराणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् ।
चतुर्थे जघन्येन, सागराणि पञ्चविंशतिः ॥ २३६ ॥ पदार्थान्वयः--चउत्थम्मि-चतुर्थ ग्रैवेयक में, जहन्नेणं-जघन्यता से, पणुवीसई-पच्चीस, सागरा-सागरोपम की, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, छव्वीस सागराइं-छब्बीस सागरोपम की, ठिई-स्थिति अर्थात् आयुप्रमाण, भवे-होती है।
मूलार्थ-चतुर्थ ग्रैवेयक अर्थात् द्वितीय त्रिक के प्रथम देवलोक के देवों की जघन्य आयु २५ सागरोपम की है और उत्कृष्ट २६ सागरोपम की कही गई है।
टीका-दूसरे त्रिक के प्रथम देवलोक में रहने वाले देवों के जघन्य और उत्कृष्ट आयुमान का प्रस्तुत गाथा में वर्णन किया गया है। इस स्वर्ग में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों प्रकार के देवों का निवास है, परन्तु ये सभी शुक्ललेश्या वाले होते हैं। अब पांचवें ग्रैवेयक के विषय में कहते हैं
सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । पंचमम्मि जहन्नेणं, सागरा उ छव्वीसई ॥ २३७ ॥
सागराणि सप्तविंशतिस्तु, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् ।
पञ्चमे जघन्येन, सागराणि तु षड्विंशतिः ॥ २३७ ॥ पदार्थान्वयः-पंचमम्मि-पांचवें ग्रैवेयक में, जहन्नेणं-जघन्यता से, छव्वीसई-छब्बीस, सागरा-सागरोपम की, तु-पुनः, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, सत्तवीसं-सत्ताईस, सागरा-सागरोपम की, ठिई-स्थिति, भवे-होती है।
मूलार्थ-पांचवें ग्रैवेयक में देवों की जघन्य स्थिति २६ सागरोपम की और उत्कृष्ट २७ सागरोपम की कही गई है।
टीका-पांचवें ग्रैवेयक अर्थात् दूसरे त्रिक के दूसरे देवलोक के देवों का जघन्य और उत्कृष्ट आयुप्रमाण कम से कम २६ सागरोपम का और उत्कृष्ट २७ सागरोपम का इस गाथा में कहा गया है। ___ अब छठे ग्रैवेयक के विषय में कहते हैं
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४७०] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं