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कोटाकोटि सागरोपम, मोहणिज्जस्स-मोहनीय कर्म की, उक्कोसा-उत्कृष्ट स्थिति है, जहन्निया-जघन्य स्थिति, अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त की है।
मूलार्थ-मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम की है और जघन्य अर्थात् कम से कम स्थिति अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण होती है। ___टीका-मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति का मान सत्तर कोटाकोटि सागरोपम का है, अर्थात् अधिक से अधिक वह इतने समय तक अपना फल दे सकता है और न्यून से न्यून उसका फल अन्तर्मुहूर्त ही हो सकता है। अब आयुकर्म की स्थिति का वर्णन करते हैं, यथा
तेत्तीससागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २२ ॥
त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा, उत्कर्षेण व्याख्याता ।
स्थितिस्त्वायुःकर्मणः, अन्तर्मुहूर्तं जघन्यका ॥ २२ ॥ पदार्थान्वयः-तेत्तीससागरोवमा-तेंतीस सागरोपम प्रमाण, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, ठिई-स्थिति, वियाहिया-कथन की गई है, आउकम्मस्स-आयुकर्म की, अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण, जहन्निया-जघन्य स्थिति है, तु-प्राग्वत्। ..
. मूलार्थ-आयु-कर्म की जघन्य अर्थात् कम से कम स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की वर्णन की गई है।
टीका-आयुकर्म की भवस्थिति होती है, कायस्थिति नहीं होती, इसलिए उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति का सम्बन्ध भव से है, काया से नहीं। अब नाम-कर्म और गोत्र-कर्म की स्थिति का वर्णन कहते हैं, यथा· उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडीओ । नामगोत्ताणं उक्कोसा, अट्ठमुहुत्तं जहन्निया ॥ २३ ॥
उदधिसदङनाम्नां विंशतिः कोटिकोटयः ।
नामगोत्रयोरुत्कृष्टा, अष्टमुहूर्ता जघन्यका ॥ २३ ॥ पदार्थान्वयः-उदही-समुद्र, सरिस-सदृश, नामाणं-नाम वाले, वीसई कोडिकोडीओ-बीस कोटाकोटि सागरोपम की, नामगोत्ताणं-नाम और गोत्र कर्म की, उक्कोसा-उत्कृष्ट स्थिति है, जहन्निया-जघन्य स्थिति, अट्ठ मुहुत्तं-आठ मुहूर्त की है।
मूलार्थ-नाम-कर्म और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की प्रतिपादन की गई है।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३०५] कम्मप्पयडी तेत्तीसइमं अज्झयणं