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जह परिणयंबगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो उ तेऊए नायव्वो ॥ १३ ॥
यथा परिणताम्रकरसः, पक्वकपित्थस्य वापि यादृशः । इतोऽयनन्तगुणः, रसस्तु तेजोलेश्याया ज्ञातव्यः ॥ १३ ॥
पदार्थान्वयः - जह-यथा, परिणयंबगरसो - पके हुए आम के फल का रस होता है, वा- अथवा, अवि-अपि - पादपूर्ति में, जारिसओ-जैसा, पक्ककविट्ठस्स- पके हुए कपित्थफल का रस होता है, तो वि- इससे भी, अनंतगुणो- अनन्तगुणा अधिक, रसो- रस, तेऊए - तेजोलेश्या का, नायव्वो- - जानना चाहिए, उ - प्राग्वत् ।
मूलार्थ - पके हुए आम्रफल अथवा पके हुए कपित्थफल का जैसा खट्टा-मीठा रस होता है उससे भी अनन्तगुणा अधिक खट्टा-मीठा रस तेजोलेश्या का समझना चाहिए ।
टीका- कच्चे आम्रफल और कपित्थफल की अपेक्षा पके हुए आम्र और कपित्थ के फल में, अर्थात् उनके रस में मधुरता 'अधिक आ जाती है और खटास का नाममात्र शेष रह जाता है। तात्पर्य यह है कि उनका मधुर रस अत्यन्त स्वादिष्ट हो जाता है, परन्तु तेजोलेश्या के रस में तो इनसे अनन्तगुणा अधिक माधुर्य और स्वादुता आ जाती है।
अब पद्मलेश्या के रस का वर्णन करते हैं, यथा
वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ । महुमेरयस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ॥ १४ ॥
वरवारुण्या इव रसः, विविधानामिवासवानां यादृशः । मधुमैरेयकस्येव रसः, इतः पद्मायाः परकेण ( भवति ) ॥ १४ ॥
पदार्थान्वयः - वर - प्रधान, वारुणीए -मदिरा का व- जैसा, रसो- रस होता है, व - अथवा, विविहाण - विविध प्रकार के, आसवाण-आसवों का, जारिसओ - जिस प्रकार का रस होता है, - अथवा, महु-मधु और, मेरयस्स-मैरेयक का, रसो- - रस होता है, एत्तो- इससे, परएणं - अनन्तगुणा अधिक रस, पम्हाए-पद्मलेश्या का होता है।
मूलार्थ - प्रधान मदिरा, नाना प्रकार के आसव, तथा मधु और मैरेयक नाम की मदिरा का जिस प्रकार का रस होता है उससे भी अनन्तगुणा अधिक रस पद्मलेश्या का है।
टीका- आसव, यह मद्य का ही एक भेद है, तथा मधु और मैरेयक भी एक प्रकार की मदिरा ही होती है और ऊंचे प्रकार की मदिरा को वारुणी कहते हैं। पद्मलेश्या का रस वारुणी, मधु और मैरेयक, इन मद्यों और नाना प्रकार के आसव तथा अरिष्टों की अपेक्षा अनन्तगुणा अधिक मधुर और स्वादिष्ट होता है। यहां पर रस के विषय में जो उक्त प्रकार के मद्यों और आसवों का उदाहरण दिया गया है वह उनके माधुर्य रस को लेकर दिया गया है न कि उनके उन्मत्त भाव की भी यहां पर अपेक्षा
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३१५ ] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं