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टीका-तिक्त रस वाले पुद्गल-स्कन्ध में-५ वर्ण, २ गन्ध, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, इस प्रकार बीस बोलों की भजना है। अब कटुक रस के विषय में कहते हैं, यथा
रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३० ॥ रसतः कटुको यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्य: संस्थानतोऽपि च ॥ ३० ॥ पदार्थान्वयः-रसओ-रस से, जे-जो, कडुए-कटु है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध रस से कटु है वह भी वर्ण से, गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भजना-युक्त होता है, अर्थात् उसमें भी उक्त वर्णादि बीस गुण यथासंभव स्थित रहते हैं। अब कषाय रस के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा
रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३१ ॥
रसतः कषायो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
- गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्य: संस्थानतोऽपि च ॥ ३१ ॥ पदार्थान्वयः-रसओ-रस से, जे-जो, कसाए-कषाय है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध रस से कषाय-रस-युक्त है उसमें भी वर्ण, गंध, स्पर्श और संस्थान की यथासंभव स्थिति होती है।
टीका-तात्पर्य यह है कि कषाय रस वाले पुद्गल-द्रव्य में भी वर्णादि २० बोलों की भजना है। अब अम्ल रस के विषय में कहते हैं. रसओ अंबिले जे उ, भइए से उ वण्णओ । . गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३२ ॥
रसतः अम्लो यस्तु , भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्य: संस्थानतोऽपि च ॥ ३२ ॥ पदार्थान्वयः-रसओ-रस से, जे-जो, अंबिले-अम्ल अर्थात् खय है, से-वह, उ-फिर, भइए-भाज्य है, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३७३ ] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं