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मूलार्थ-रस से जो पुद्गल-स्कन्ध अम्ल रस वाला है वह भी वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भजनायुक्त होता है।
टीका-अम्ल-रस-युक्त पुद्गल-स्कन्ध में भी-५ वर्ण, २ गंध, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, ऐसे बीस बोलों की भजना समझ लेनी चाहिए। अब मधुर रस के विषय में कहते हैं
रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३३ ॥ .
रसतो मधुरो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतः स्पर्शतश्चैव, भाज्य: संस्थानतोऽपि च ॥ ३३ ॥ पदार्थान्वयः-रसओ-रस से, जे-जो, महुरए-मधुर है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, उ एव-पूर्व की भांति। ___ मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध रस से मधुर है वह वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से भी भाज्य अर्थात् भजनायुक्त है। ____टीका-मधुर-रस-युक्त पुद्गल-स्कन्ध में उक्त वर्णादि २० गुणों का भी यथासम्भव स्थान है, अर्थात् वे भी उसमें रहते हैं, इस प्रकार उक्त पांचों रसों के भी १०० बोल होते हैं। __अब आठ स्पर्शों के विषय में वर्णन का उपक्रम करते हुए प्रथम कर्कश स्पर्श के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा
फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ. रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ॥
स्पर्शतः कर्कशो यस्तु, भाज्यः स तु. वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥३४॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो पुद्गल, कक्खडे-कर्कश है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।।
मूलार्थ-स्पर्श से जो पुदगल-स्कन्ध कर्कश अर्थात् कठोर स्पर्श वाला है उसमें वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान की भी भजना होती है।
टीका-कर्कश स्पर्श वाले पुद्गल-स्कन्ध में भी वर्णादि की भांति-५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और ५ संस्थान, इस प्रकार १७ बोलों की भजना समझ लेनी चाहिए। अब मृदु स्पर्श के विषय में कहते हैं, यथा
फासओ मउए जे उ, भइए से उ वण्णओ । . गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३५ ॥
___ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३७४] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं