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मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध संस्थान से आयत अर्थात् दीर्घ है वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भी भजनायुक्त है।
____टीका-दीर्घाकार में परिणत होने वाले पुद्गल-स्कन्ध में-५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और ८ स्पर्श यथासंभव विद्यमान होते हैं। जैसे कि कोई दीर्घाकार पुद्गल लाल वर्ण का होता है, और कोई काले वर्ण का तथा किसी में तिक्त रस होता है और किसी में कषाय रस होता है। इसी प्रकार गन्ध और स्पर्शादि के विषय में भी समझ लेना चाहिए। इस रीति से संस्थान की दृष्टि से भी पुद्गल-स्कन्ध के १०० भेद होते हैं।
इस प्रकार वर्ण से लेकर संस्थान-पर्यन्त उक्त क्रम के अनुसार सब के ४८२ भेद होते हैं, यथा-वर्ण के १००, गन्ध के ४६, रस के १००, स्पर्श के १३६ और संस्थान के १००, कुल मिलाकर ४८२ भंग बन जाते हैं। ___यहां प्रज्ञापना-सूत्र के वृत्तिकार का स्पर्श के विषय में कुछ मतभेद है। वे आठ स्पर्शों के १८४ भेद मानते हैं। उनके मत में प्रत्येक स्पर्श के २३ भेद हैं। इस प्रकार २३४८१८४ भेद हए। उनका कथन है कि जो पदगल कर्कश स्पर्श वाला है उसमें ५ वर्ण. २ गन्ध. ५ रस.५ संस्थान और ६ स्पर्श रहते हैं, इस प्रकार कर्कश स्पर्श के कुल २३ भेद हुए, कारण कि कर्कश-स्पर्श का प्रतिपक्षी जो मृदु-स्पर्श है उसको छोडकर अवशिष्ट ६ स्पर्शों के लिए वहां पर कोई प्रतिबन्धक नहीं है, अर्थात् अवशि
तिबन्धक नहीं है, अर्थात् अवशिष्ट छओं स्पर्श भी वहां पर रहते हैं। इस भांति शीत-स्पर्श में उसके विरोधी उष्ण-स्पर्श को छोड़कर अवशिष्ट ६ स्पर्श रहेंगे, अत: वृत्तिकार के कथनानुसार कुल भेद ५३० होते हैं। ___यहां पर इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि वीतराग का कथन तो सदैव सत्य और मान्य है, किन्तु जिस नय के आश्रित होकर जिस आचार्य ने जिस तत्त्व का वर्णन किया है वह उस नय की अपेक्षा से उसी प्रकार मानना चाहिए। गीतार्थ के लिए उसमें किसी प्रकार का विवाद नहीं होता। इसलिए स्थूल-रूप से यहां पर उक्त भंगों का दिग्दर्शन कराया गया है और सूक्ष्म विचार से तो तारतम्य भाव को लेकर इनके अनन्त भेद हो सकते हैं, कारण कि पुद्गल-द्रव्य की परिणति बहुत विचित्र है, अतः आगम के अनुसार जो कथन हो वह सब से अधिक श्रद्धेय होता है।
__ टिप्पणी-प्रस्तुत अध्ययन में कुछ एक वृत्तिकारों ने कर्कश आदि आठ स्पर्शों के १७-१७ भेद और कुल १३६ भेद बनाए हैं. जबकि आचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापना सत्र के पहले पद की व्याख्या करते हए आठ स्पर्शों के २३
रि कुल १८४ भेदों का निर्देश किया है। दोनों ओर संख्या में इतना अन्तर क्यों ? .
. इस अध्ययन की स्पर्शविषयक गाथाओं में कर्कश आदि आठ स्पर्शों के जो १७-१७ भेद किए हैं, उनमें ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और ५ संस्थान, इस प्रकर १७-१७ भेद और कुल १३६ भेद वृत्तिकारों ने प्रदर्शित किए हैं, उन गाथाओं में स्पर्श का उल्लेख नहीं किया। उपलक्षण से फासओ शब्द का ग्रहण हो जाता है क्योंकि गाथा में फासओ शब्द और जोड़ने से छन्दोभंग हो जाता है। जैसे किसी एक वर्ण को भाजन बना कर शेष चार- वर्णों को प्रतिपक्षी बनाया जाता है, वैसे ही उन वृत्तिकारों ने संभव है ८ स्पर्शों में किसी एक को भाजन बनाकर सात स्पर्शों को प्रतिपक्षी बना दिया हो। वस्तुत: स्पर्श के सन्दर्भ में प्रतिपक्षी एक ही होता है, सात नहीं। जैसे कि कर्कश का प्रतिपक्षी मृदु, मृदु का प्रतिपक्षी कर्कश। इसी तरह गुरुं और लघु, शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष के सन्दर्भ में भी जानना चाहिए। अतः गाथाओं में फासओ शब्द का ग्रहण अध्याहार से कर लेना चाहिए। तभी दोनों ओर की संख्या में एकरूपता आ सकती है। अतः १७-१७ भेदों के स्थान पर २३-२३ भेद, कुल १८४ भेद ही स्पर्श के अधिक सुसंगत हैं।
-संपादक
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३७९] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं