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मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध संस्थान से वृत्ताकार अर्थात् गोलाकार है वह वर्ण से, गन्ध से, रस से तथा स्पर्श से भी भजनायुक्त है, अर्थात् वृत्त-संस्थान वाले पुद्गल में यथासंभव उक्त गुण भी रहते हैं। शेष व्याख्या पूर्ववत् ही है। अब त्रिकोण-संस्थान के विषय में कहते हैं
संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४४ ॥
संस्थानतो भवेत् त्र्यस्त्रः, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः स स्पर्शतोऽपि च ॥ ४४ ॥ पदार्थान्वयः-संठाणओ-संस्थान से जो, तंसे-त्रिकोण, भवे-हो, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, फासओवि-स्पर्श से भी, भइए-भाज्य है, एव-उ-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध संस्थान से त्रिकोण है वह वर्ण से, गन्ध से, रस से तथा स्पर्श से भी भजनायुक्त है, अर्थात् उसमें वर्ण, रस, गन्धादि भी यथासंभव रहते हैं। अब चतुष्कोण-संस्थान के विषय में कहते हैं, यथा
संठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ वि य॥ ४५ ॥
संस्थानतो यश्चतुरस्त्रः, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धओ रसतश्चैव, भाज्यः स स्पर्शतोऽपि च ॥.४५ ॥ पदार्थान्वयः-संठाणओ-संस्थान से, जे-जो, चउरंसे-चतुष्कोण है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, फासओवि-स्पर्श से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध संस्थान से चतुष्कोण होता है वह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से भी भजनायुक्त है, अर्थात् उसमें वर्णादि उक्त बीस गुण भी यथासंभव रहते हैं। अब आयत-संस्थान के सम्बन्ध में कहते हैं
जे आययसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओ वि य ॥ ४६ ॥
य आयतसंस्थानः, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः स स्पर्शतोऽपि च ॥ ४६ ॥ पदार्थान्वयः-जे-जो पुद्गल-स्कन्ध, आययसंठाणे-आयत-संस्थान वाला है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-पुनः, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, फासओवि-स्पर्श से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-प्राग्वत्।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३७८] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं