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फासओ सीयए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३८ ॥
स्पर्शतः शीतो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३८ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो पुद्गल, सीयए-शीत स्पर्श वाला है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, उ-एव-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध स्पर्श में शीतल है वह भी वर्ण, गन्ध, रस तथा संस्थान से भजनायुक्त है। अब उष्ण स्पर्श के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा
फासओ उण्हए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३९ ॥ स्पर्शतः उष्णो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः । ..
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३९ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, उण्हए-उष्ण है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव-उ-पूर्ववत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध स्पर्श से उष्ण है वह वर्ण, गन्ध, रसं और संस्थान से भी भजनायुक्त होता है और सब कुछ पूर्ववत् ही है। अब स्निग्ध स्पर्श के विषय में कहते हैं, यथा- .
फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ४० ॥
स्पर्शतः स्निग्धो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ४० ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, निद्धए-स्निग्ध है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य होता है, एव उ-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुदगल-स्कन्ध स्निग्ध स्पर्श वाला है वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भी भजनायुक्त है, अर्थात् उसमें वर्णादि १७ बोलों की भजना होती है।
अब रूक्ष स्पर्श के विषय में कहते हैं, यथा
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३७६] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अझयणं