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पदार्थान्वयः-वण्णओ-वर्ण से, लोहिए-रक्तवर्ण, जे-जो पुद्गल है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, गंधओ-गंध से, रसओ-रस से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है।
मूलार्थ-जो पुद्गल लाल रंग वाला है वह भी गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से युक्त है। तात्पर्य यह है कि लाल वर्ण के पुद्गल में गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की भजना है, अर्थात् ये गुण उसमें भी अपेक्षित स्थिति में विद्यमान रहते हैं। __ अब पीत वर्ण के विषय में कहते हैं, यथा
वण्णओ पीयए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २५ ॥
वर्णतः पीतो यस्तु, भाज्यः स तु गन्धतः ।
रसतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः, संस्थानतोऽपि च ॥ २५ ॥ पदार्थान्वयः-वण्णओ-वर्ण से, जे-जो, पीयए-पीतवर्ण है, से-वह, उ-फिर, भइए-भाज्य है, गंधओ-गन्ध से, रसओ-रस से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है।
मूलार्थ-पीत वर्ण के पुद्गल में भी-दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श और पांच संस्थान होते हैं। तात्पर्य यह है कि यहां पर भी कृष्ण और नील वर्ण की तरह २० बोल अथवा गुणों की व्यवस्था समझ लेनी चाहिए। अब शुक्ल वर्ण के विषय में कहते हैं
वण्णओ सुक्किले जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २६ ॥ . वर्णतः शुक्लो यस्तु, भाज्यः स तु गन्धतः ।
रसतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ २६ ॥ पदार्थान्वयः-वण्णओ-वर्ण से, सुक्किले-शुक्लवर्ण, जे-जो पुद्गल-द्रव्य है, से-वह, उ-फिर, गंधओ-गंध से, रसओ-रस से, च-और, फासओ-स्पर्श से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है।
मूलार्थ-जो पुद्गल-स्कन्ध वर्ण से श्वेत वर्ण वाला है उसमें भी गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान अर्थात् आकृतिविशेष की भजना है, तात्पर्य यह है कि उस श्वेत रंग के पुद्गल में भी गन्धादि २० प्रकार के गुण रहते हैं। सो इस प्रकार पांचों वर्गों के कुल मिलाकर १०० बोल हो जाते हैं। अब द्वितीय गुण (गन्ध ) के विषय में कहते हैं
गंधओ जे भवे सब्भी, भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २७ ॥
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३७१] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं