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कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण उ भवे ॥ १८ ॥
ग्रामे नगरे तथा राजधान्यां, निगमे चाकरे पल्याम् । खेटे कर्वटे द्रोणमुखे, पत्तन - मडंब - सम्बाधे ॥ १६ ॥ आश्रमपदे विहारे, सन्निवेशे समाजघोषे च । स्थली सेना स्कन्धावारे, सार्थे संवर्त-कोटे च ॥ १७ ॥ वाटेषु वा रथ्यासु वा, गृहेषु वैवमेतावत् क्षेत्रम् । कल्पते त्वेवमादि, एवं क्षेत्रेण तु भवेत् ॥ १८ ॥ पदार्थान्वयः - गामे-: - ग्राम में, नगरे नगर में, तह- तथा, रायहाणि - राजधानी में, निगमें-निगम में, य-और, आगरे - आकर में, पल्ली - पल्ली में, खेडे-खेड़े में, कव्वडे - कर्बट में, दोणमुहे द्रोणमुख में, पट्टणे-पत्तन में, मडंबे - मडंब में, संबा - संबाध में, आसमपए - आश्रमपद में, विहारे - विहार में, संनिवेसे- सन्निवेश में, समाय- समाज में, घोसे - घोष में, य-और, थलि-स्थल, सेणा-सेना में, खंधारे-स्कन्धावार में, सत्थे - सार्थ में, संवट्ट - संवर्त में, य-तथा, कोट्टे - कोट में, वाडेसु - घरों के समूह में, य-और, रत्थासु-गलियों में, घरेसु - घरों में, वा - अथवा, एवं - इस प्रकार, इत्तियं - एतावन्मात्र, खेत्तं-क्षेत्र अर्थात् भिक्षाचारी के वास्ते, कप्पइ - कल्पता है, आई- आदि शब्द से गृहशाला आदि, एवं - इस प्रकार, खेत्तेण-क्षेत्र से, भवे - ऊनोदर तप होता है, उ-पूर्णार्थक है।
मूलार्थ - ग्राम, नगर, राजधानी और निगम में आकर, पल्ली, खेटक और कर्बट द्रोणमुख, पत्तन और संबाध में, आश्रमपद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थल, सेना, स्कन्धावार, सार्थ, संवर्त और कोट में तथा घरों के समूह, रथ्या और गृहों में, एतावन्मात्र क्षेत्र में भिक्षाचरण कल्पता है। आदि शब्द से अन्य गृहशाला आदि जानना चाहिए। इस प्रकार से यह क्षेत्रसम्बन्धी ऊनोदरी-तप कहा है।
टीका-ऊपर जितने स्थानों का नाम बताया है उनमें से, आज 'मैं इतने स्थानों में से भिक्षा ग्रहण करूंगा' इस प्रकार का अभिग्रह अर्थात् नियम- मर्यादा करना क्षेत्र - ऊनोदरी - तप है।
जो गुणों को ग्रसता है और अष्टादश करों से युक्त है वह ग्राम है। जो कर से रहित है वह - न - कर - नगर है ।
राजा ने जिसको धारण किया है अर्थात् राजा के रहने का जो स्थान है वह राजधानी है।
जहां पर अनेक वणिक् लोग बसते हों और नाना प्रकार के पण्य जहां से निकलते हों वह निगम स्थान है।
हिरण्यादि की उत्पत्ति का स्थान आकर कहलाता है।
अटवी के मध्यगत प्रदेश को अथवा जहां दुष्ट जनों का पालन हो उसे पल्ली कहते हैं। मिट्टी के प्राकार से मंडित स्थान खेटक होता है।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ १८२] तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं