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अब फिर कहते हैं -
. एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवज्जई । . उक्कुद्दई उप्फिडई, सढे बालगविं वए ॥ ५ ॥
एकः पतति पाāण, निविशति निपद्यते ।
__उत्कूदते उत्प्लवते, शठः बालगवीं व्रजेत् ॥ ५ ॥ पदार्थान्वयः-एगो-एक वृषभ, पासेणं-एक ओर, पडइ-गिर पड़ता है, निवेसइ-बैठ जाता है, निवजई-सो जाता है, उक्कुद्दई-कूदता है, उप्फिडई-उछलता है, सढे-शठ, बालगविं-चढ़ती उमर की गौ के पीछे, वए-भागता है।
मूलार्थ-एक वृषभ, एक तरफ भूमि पर गिर पड़ता है, एक बैठ जाता है, कोई वृषभ सो जाता है कोई (मण्डूक की तरह) उछलता-कूदता है तथा कोई एक शठ बैल किसी चढ़ती उमर की गौ के पीछे भागने लग जाता है।
टीका-जब वाहक उन दुष्ट बैलों को मारता है, तब उनमें से कोई बैल तो एक तरफ भूमि पर गिर पड़ता है-एक तरफ लेट जाता है, कोई बैल बैठ जाता है, कोई सो जाता है, कोई कूदने लग जाता है और कोई उछलता है। इसके अतिरिक्त कोई-कोई शठ बैल चढ़ती उमर की गौ के पीछे भागने लगता है। ____ तात्पर्य यह है कि दुष्ट बैल इस प्रकार की अनेक कुचेष्टाओं को करते हुए स्वयं दुःखी होते हैं
और वाहक को भी अत्यन्त दु:खी करते हैं। यहां प्राकृत के कारण यदि 'बालगवी' पद का 'बालगवः-दुष्ट बलीवर्दः' यह अर्थ किया जाए, तब इसकी संगति के लिए यह अर्थ करना होगा कि-वे दुष्ट बैल अनेक प्रकार की कुचेष्टाएं करते हैं। व्रजेत्-गच्छेत्' अनेक स्थानों में भागना। यद्यपि मूलपाठ में वृषभ का उल्लेख नहीं, तथापि रूढ़िवशात् वृत्तिकारों ने वृषभ ही ग्रहण किया है। अब फिर कहते हैं -
माई मुद्धेण पडई, कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं । मयलक्खणेण चिट्ठई, वेगेण य पहावई ॥६॥ मायी मूर्ना पतति, क्रुद्धो गच्छति प्रतिपथम् ।
मृतलक्षणेन तिष्ठति, वेगेन च प्रधावति ॥ ६ ॥ पदार्थान्वयः-माई-मायावान् कपटी, मुद्धण-मस्तक के बल, पडइ-गिर पड़ता है, कुद्धे-क्रोध युक्त होता हुआ, पडिप्पह-पीछे को, गच्छइ-भाग जाता है, मयलक्खणेण-मृतलक्षण से, चिट्ठइ-ठहर जाता है, य-और, वेगेण-वेग से, पहावई-दौड़ता है।
.. मूलार्थ-मायावी वृषभ, मस्तक के बल गिर पड़ता है, क्रोध-युक्त होकर उलटे मार्ग पर चल पड़ता है, मृतलक्षण से ठहर जाता है और कोई एक वेग से भाग खड़ा होता है।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [६३] खलुंकिजं सत्तवीसइमं अज्झयणं