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प्रस्तावना
ऐसा ही एक प्रमाण शतक की चूर्णिमें भी मिलता है जिससे जान पढ़ता है कि शतक की चूर्णि लिखे जानेके पहले प्राकृत पचसग्रह लिखा ना चुका था ।
शतक की ६३ वै गाथा की चूर्णिमें दो वार पाठान्तर का उल्लेख किया है । ये पाठान्तर प्राकृत पंचमंग्रहमें निबद्ध दिगम्बर परम्पराके शतकमे लेकर दुत किये गये जान पढते हैं
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शतककी ९३ वीं गाया इस प्रकार है
'आउक्कस पलस्स पच मोहम्स सत्त ठाणाणि । संसाणि तणुकसाथ वध उक्कोसगे जोगे ||१३||' प्राकृत पचसग्रह के शतकमें यह गाथा इस प्रकार पाई जाती है
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'आउसस्स पदेसम्स छचत्र मोहस्स णव दु ठाणाणि । संसाणि तणुकसाओ वधइ उपकस्सजोगेण ॥'
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इन गाथाओं को देखनेसे दोनोंका मनभेद स्पष्ट ज्ञात हो जाता है शतककी पूर्णिमें इसी मतभेद की चर्चा की गई है। वहीं इस मतभेदका इस प्रकार निर्देश किया है
"अन्ने पढनि मोहस्स
"अन्ने पढति भउक्कोसरल छ प्ति एव उठानाणि । "
शतक की चूर्णि कत्र लिखी गई इसके निर्णयका अब तक कोई निश्चित आधार नहीं मिला है । मुक्काबाई ज्ञानमन्दिर डभोई मे प्रकाशित होने वाली चणिसहित सित्तरी की प्रस्तावना में प० अमृतलालजीने एक प्रमाण अवश्य उपस्थित किया है । यह प्रमाण खंभात में स्थित श्री शान्तिनाथजी की ताढपत्रीप्य भंडारको एक प्रतिसे लिया गया है । इसमें शतककी चूर्णिका कर्ता श्रीचन्द्र महत्तर श्वेताम्बराचार्यको मतलाया
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(१) कृतिराचार्य श्रीचद्र महत्तर शितांबरस्य शतकस्य । प्रशस्त दि ६ शनो लिखितेति ॥ ६ ॥
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