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* प्राकृत व्याकरण *
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गिरिणो | तरुणी पेच्छ । इदुत इत्येव । वच्छे पेच्छ । जस्-शस् (३-१२ ) इत्यादिना शसि दीर्घस्य लक्ष्यानुरोधार्थी योगः लुप्त इति तु वि प्रति प्रसवार्थशङ्कानिवृत्यर्थम् ||
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अर्थ:- प्राकृतीय इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्दों में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में 'शस्' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर एवं सूत्र संख्या ३-४ के विधान से प्राप्त प्रत्यय 'शस्' का लोप होने पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' अथवा 'उ' के स्थान पर दीघ 'ई' अथवा दीघ 'क' को प्राप्ति यथा क्रम से होती है । जैसे:-गिरीमनगरी अश्रत पहाड़ों को बुद्धी:-बुद्धी अर्थात बुद्धियों को; तरून तरू अर्थात, वृक्षों की धेनूः पश्य धेणू बेच्छ अथात गायों को देखो। इन उदाहरणों में अन्त्य ह्रस्व स्वर को 'शस्' प्रत्यय का लोप होने से दीघता प्राप्त हुई हैं; यो अन्यत्र भी जान लेना चाहिये ।
प्रश्नः - 'शस' प्रत्यय का लोप होने पर हो अन्त्य ह्रस्व स्वर की दीर्घता प्राप्त होता है, ऐसा क्यों कहा गया हैं ?
उत्तरः- ह्रस्व इकारान्त अथवा उकारान्त पुल्लिंग शब्दों में सूत्र- संख्या ३ २२ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन मे शस्' प्रत्यय के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'खो' प्रत्यय की प्राप्ति भी हुआ करती है, तदनुसार यदि 'शशु पर 'हो' की प्राप्ति होती है तो ऐसी अवस्था में अन्त्य हृम्ब स्वर 'ड्र' अथवा 'उ' की दोघंता की प्राप्ति नहीं होगी; इसीलिये 'लुप्त' शब्द का उल्लेख किया गया है सारांश यह है कि दीर्घता की प्राप्ति 'शस्' प्रत्यय की लोपावस्था पर निर्भर है; यदि 'शस्' के स्थान पर आदेश प्राप्त 'खो' प्रत्यय प्राप्त हो जाता है तो दीर्घता का भी अभाव हो जाता है । जैसे:गिरीन् = गिरिणां अर्थात् पहाड़ों को और तरून पश्य तरुणां (अर्थात वृक्षों को ;) पेच्छ=देखो ||
प्रदनः इकारान्त अथवा उकारान्त शब्दों में ही 'शस्' प्रत्यय का लोप होने पर अन्त्य ह्रस्व स्वर की ताकी प्राप्ति होतो है; ऐसा क्यों कहा गया हैं ?
उत्तर:- अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में भी द्वितीया विभक्तिबोधक प्रत्यय 'राम' का सूत्र संख्या ३-४ के विधान से लोप होता है; परन्तु 'शस' प्रत्यय का लोप होने पर भी अन्य ह्रस्व स्वर 'अ' को ही 'आ' की प्राप्ति बैकल्पिक रूप से ही होती है तथा सूत्र- संख्या ३-१४ से अन्त्य' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति भी हुआ करती है; इस प्रकार 'शस' की लोपावस्था में अन्त्य ह्रस्व स्वर 'अ' को कभी 'था, की प्राप्ति होती है तो कभी 'ए' की प्राप्ति होती है; यो नित्य 'दीर्घता' का अभाव होने से अकारान्त शब्दों को नहीं लेते हुए इकारान्त अथवा उकारान्त शब्दों के लिए ही यह दीर्घता का विधान 'नित्य रूप से किया गया है । जैसे:- वृक्षान् पश्य=वच्छे पच्छ अथात वृक्षों को देखो। इस उदाहरण में 'बच्छ' अकारान्त शब्द
द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'शस' का लोप हुआ है परन्तु अन्त्य 'अ' को 'आ' नहीं होकर 'ए' की प्राप्ति हुई हैं; परन्तु तदनुसार अकारान्त शब्दों में नित्य 'दीर्घता' का अभाव प्रदर्शित किया गया है। य इकारान्त और उकारान्त शब्दों में 'शस' प्रत्यय के लीप होने पर नित्य दीर्घता के विधान की
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