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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * poweredroomerseratorsttierrorrerronsoorwwwwwwwwwwwtarseenetram
तरुम् संस्कृत द्वितीयान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप तसं होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक बचन में 'म्' प्रत्यय की प्राति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर तर रूप सिद्ध हो जाता है। पच्छ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-7 में की गई है ।।३.१६।।
चतुरो वा ॥३--१७॥ चतुर उदन्तस्य भिस् भ्यस्-सुप्सु परेषु दी| वा भवति ।। चऊहि । चउहि । चऊओं चउरो । चऊसु चउसु ।।
अर्थ:-'चतुर ' संस्कृत शब्द के प्राकृन-रूपान्तर 'चर' में तृतीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'भिस' के आदेश-प्राप्त प्रत्यय हि हि और हिं' को प्रामि होने पर; पंचमी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'भ्यस्' के श्रादेश-प्रान प्रत्यय 'हि' हिन्तों. सुन्तों आदि की प्राप्ति होने पर और सप्तमो विभक्ति के बहुवचन के प्रस्थय 'सुप' के आदेश प्राप्त प्रत्यय 'सु' की प्राप्ति होने पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' को वैकल्पिक रूप से दोघं 'ऊ' की प्राप्ति होती है । जैसे:-चतुर्भिः च हि अथवा चहि; चतुर्थ्यः = घऊो अथवा चलो और चतुषु चऊसु अथवा चउसु ।।
चतुर्भिः संस्कृत तृतीयान्त संख्या वाचक बहुवचन-विशंपण रूप है। इसके प्राकृत रूप चहि और घहि होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-५१ से मूल संस्कृत शब्द 'चतुर' में स्थित श्रन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'र' का लोप; १-५४७ से 'त्' का लोप; ३.१७ से शेष 'उ' को बैकल्पिक रूप से दीर्घ 'ऊ' की प्राप्ति; और ३.७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'मिस्' के स्थान पर प्रादेश-प्राप्त 'हि' प्रत्यय को मानि होकर कम से दोनों रूप चहि और चाहि सिद्ध हो जाते हैं।
चतुर्य: संस्कृत पञ्चम्यन्त संख्या वाचक बहुवचन-विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप चमनी और चउओहोते हैं। इनमें 'च' और 'चड' तक की सानिका इमी सूत्र में कृत नपरोक्त राति-- अनुसार; और ३.६ से पंचमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय भ्यस्' के स्थान पर अादेश-श्राम 'प्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों रूप चऊओ और पभो सिद्ध हो जाते हैं।
चतुई संस्कृत सप्तम्यन्त संख्या वाचक बहुवचन विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप चऊसु और पासु होते हैं। इनमें 'च' और 'च' तक को साधनिका इसी सूत्र में उपरोक्त रीति अनुसार और ९-२६० से 'ष' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति होकर कम से दोनों रूप चऊसु और यउसु सिद्ध हो जाते हैं ॥३-११॥
लुप्त शसि ॥३-१८॥ इदुतोः शसि लुप्ते दी? भवति ॥ गिरी । बुद्धी । तरू । धेणू पेच्छ ।। लुप्त इति किम ।