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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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बुदिभ्यः संस्कृत पचम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप बुद्धीभी होता है। इसमें सूत्र--संख्या ३-१६ और ३-६ से 'गिरीओं के समान हो साधनिका की प्राप्ति होकर बुद्धीमी रूप सिद्ध हो जाता है।
दधिभ्यः संस्कृत पञ्चम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप दही यो होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-१८७ से 'ध' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-१६ तथा ३-६ से गिरीओ' के समान ही सानिका की प्राप्ति होकर दहीओ रूप सिद्ध हो जाता है।
तरुभ्यः संस्कृत पञ्चम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप तरूश्रो होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.१६ और ३-६ से 'गिरीश्री' के समान ही साधुनिका की प्राप्ति होकर तरूमओ रूप सिद्ध हो जाता है।
धेनुभ्यः संस्कृत पञ्चम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप धेशूओ होता है । इसमें सूत्रमंख्या १-२८ मे के कशान पर 'or को प्रोनि और ३-१६ तथा ३-६ से 'गिरीश्रो' के समान ही शेष सानिका की प्राप्ति होकर शेणाओ रूप सिद्ध हो जाता है।
मधुभ्यः संस्कृत पञ्चम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रुप महूश्रो होता है। इसमें सूत्रसंख्या १-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्रामि और ३.१६ तथा ३-६ से गिरीओं के समान ही शेष सावनिका की प्राप्ति होकर महओ रूप सिद्ध हो जाता है।
आगओ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२६८ में की गई है।
गारषु संस्कृत मतम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप गिरीसु होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-१६ से द्वितीय हस्व स्वर इ' के स्थान पर दाघ स्वर 'ई' की प्राप्ति; और १-२६० से 'पू' के स्थान पर 'स' का प्राप्ति होकर गिरीसु प सिद्ध हो जाता है।
बुद्धिधु संस्कृत साम्यन्न बहुवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप बुद्धोसु होता है। इसमें सूत्र - मख्या ३.१६ से 'इ' के स्थान पर 'ई' की प्राप्ति और १-२६० से 'ष' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति होकर वृद्धासु रूप सिद्ध हो जाता है।
दृधियु संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप वहीसु होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; ३-१६ से 'ह' के स्थान पर 'ई' की प्राप्ति और १-२६० से 'पू' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति होकर इहासु रूप सिद्ध हो जाता है।
तरुषु संस्कृत सम्यन्त बहुवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप तरूम होता है। इसमें सूत्र--संख्या ३.१६ से प्रथम 'उ' के स्थान पर दीर्घ 'ऊ' की प्राप्ति और १-२६० से '' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति होकर नरूम रूप सिद्ध हो जाता है।
धनुषा-संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन रूप है । इसका प्राकृत रूप घेणूस होता है । इसमें सूत्र