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अब तुम जानते हो कि वह एक स्वप्न था, लेकिन फिर भी तुम्हारा हृदय जोर से धड़कता ही रहता है। और तुम भलीभांति जानते हो कि वह एक सपना था। अब तुम पूरी तरह जागे हु हो। तुमने रोशनी कर ली है-कहीं कोई नहीं है, कुछ नहीं है। लेकिन तुम्हारा शरीर थोड़ा कंपता ही रहता है। थोड़ा समय लगेगा फिर से शांत होने में।
एक झूठा सपना, कैसे वह सच्ची घटना पैदा कर देता है शरीर में? केवल दो संभावनाएं हैं। पहली कि शरीर भी कोई बड़ी सच्चाई नहीं है। यह है जीवन के विषय में हिंदू- दृष्टि । क्योंकि एक स्वप्न इसे प्रभावित कर सकता है, तो यह स्वप्न जैसा ही होगा यह सत्य नहीं हो सकता। दूसरी संभावना यह है. क्योंकि तुम सपने को सच मान लेते हो, इसीलिए वह तुम्हें प्रभावित करता है। वह सच हो जाता है। यह तुम्हारा अपना मन ही है; यदि तुम किसी चीज को सच मान लेते हो, तो वह
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सच हो जाती है। यदि तुम उसे झूठ मानो तो वह झूठ हो जाती है तब वह तुम्हें बिलकुल प्रभावित नहीं करती।
कभी ध्यान देना. तुम्हें भूख लगी है। क्या यह सच्ची भूख है? तुम्हारे शरीर की जरूरत है? या केवल इसलिए कि तुम रोज इसी समय भोजन करते हो तो घड़ी कह देती है कि समय हो गया, भूख अनुभव करो। घड़ी कह देती है और तुम तुरंत आज्ञा मान लेते हो; तुम्हें भूख लगने लगती है। क्या यह सच्ची भूख है? यदि यह सच्ची भूख होती, तो जितनी देर तुम भूखे रहो उतनी ही ज्यादा यह बढ़ेगी। यदि तुम रोज एक बजे खाना खाते हो और तुम्हें एक बजे भूख लगती है, तो थोड़ा रुकना । बस पंद्रह मिनट बाद ही तुम्हें भूख नहीं रह जाएगी, एक घंटे बाद तुम बिलकुल भूल ही जाओगे क्या हुआ ? यदि भूख सच्ची होती, तो एक घंटे बाद और ज्यादा बढ़ जाती - लेकिन वह तो मिट गई। वह मन का एक खेल थी - शरीर की वास्तविक आवश्यकता न थी, मात्र एक काल्पनिक आवश्यकता थी, एक झूठी आवश्यकता थी ।
तो ध्यान देना कि क्या सच है और क्या झूठ है, और तुम बहुत सी चीजों के प्रति सजग होओगे। और तब तुम उनमें भेद कर सकते हो। और जीवन और और सरल होता जाएगा। यही है संन्यास का अर्थ यह जान लेना कि क्या-क्या झूठ है। यदि कोई चीज झूठ है, और तुमने उसे झूठ की तरह जान लिया है, तो उसकी जरा भी मालकियत नहीं रहती तुम पर। जिस क्षण तुम समझ लेते हो कि 'यह झूठ है', उसकी ताकत खो जाती है, वह बेजान हो जाती है, अब वह तुम्हें प्रभावित नहीं करती। जीवन ज्यादा सहज हो जाता है, ज्यादा स्वाभाविक हो जाता है।
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और फिर धीरे-धीरे, तुम जान लेते हो कि निन्यानबे प्रतिशत चीजें झूठ हैं। मैं कहता हूं निन्यानबे प्रतिशत, एक प्रतिशत मैं छोड़ देता हूं अंतिम चरण के लिए, क्योंकि उस अंतिम चरण में वह भी झूठ हो जाती है - एकमात्र सत्य जो बच रहता है, वह तुम हो। एक-एक करके हर चीज झूठ हो जाती है और छूट जाती है, अंततः केवल चैतन्य ही सत्य बचता है।