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फिर ऊर्जा उठती है छठवें केंद्र तक, तीसरी आंख तक। वहां तुम अनुभव करते हो-प्रकाश, सजगता, चेतना। वही है जगह जहां नींद घटित होती है, सम्मोहन घटित होता है। क्या तुमने किसी सम्मोहन करने वाले को ध्यान से देखा है? वह तुम्हें एक बिंदु पर टकटकी लगा कर देखने को कहता है। जब तुम अपनी दोनों आंखों को एक बिंदु पर स्थिर कर देते हो, तो तुम्हारी तीसरी आंख सो जाती है। वह एक तरकीब है तीसरी आंख को सुला देने की।
जब ऊर्जा तीसरी आंख तक पहुंचती है, तुम बहुत प्रकाश से भरा हुआ अनुभव करते हो, सारा अंधकार तिरोहित हो जाता है, असीम प्रकाश घिर जाता है तुम्हारे चारों ओर। वस्तुत: तब तुम में कोई छाया नहीं बचती। तिब्बत में एक बहुत पुरानी कहावत है. 'जब योगी बोध को उपलब्ध होता है तो उसके शरीर की छाया नहीं पड़ती।' इसे अक्षरश: मत मान लेना-शरीर तो छाया बनाएगा ही। लेकिन भीतर क्योंकि बहुत प्रकाश है हर जगह-बिना स्रोत का प्रकाश है..। यदि प्रकाश किसी स्रोत से आता है तो छाया बनेगी ही; बिना स्रोत का प्रकाश है. तो कहीं कोई छाया नहीं बन सकती।
और अब जीवन का एक अलग ही अर्थ और आयाम होता है। तुम चलते हो धरती पर, लेकिन तुम अब धरती के नहीं हो, जैसे कि तुम उड़ रहे होते हो। तुम आ गए बुद्धत्व के निकटतम। अब बहुत निकट है बगीचा; आने लगी सुगंध। इस जगह, पहली बार, तुम सक्षम होते हो बुद्ध को समझने में। इससे पहले धीरे- धीरे थोड़ी-थोड़ी समझ आशिक-रूप से घटित होती है तुम्हें, लेकिन पूरी समझ घटित नहीं होती। लेकिन इस जगह तुम करीब होते हो, एकदम करीब होते हो द्वार के। मंदिर आ गया; एक दस्तक-और द्वार खुल जाएगा और तुम बुद्ध हो जाओगे। अब, इतने करीब और इतने निकट तुम पहली बार अनुभव करते हो कि समझ क्या है!
और फिर ऊर्जा उठती है सातवें केंद्र तक, सहस्रार तक। वहा वह बन जाती है ब्रह्मचर्य, दिव्य जीवन। फिर तुम मनुष्य न रहे। फिर तुम ईश्वर हो जाते हो। तुमने भगवत्ता, दिव्यता उपलब्ध कर ली होती है। यह है ब्रह्मचर्य।
और फिर है अपरिग्रह। और केवल ब्रह्मचर्य के बाद ही, जब तुम परम तृप्ति को उपलब्ध हो जाते हो, तुम मालिक होते हो संसार के बिना किसी मालकियत के। लेकिन धीरे-धीरे तुम्हें स्वयं को तैयार करना होता है अपरिग्रह के लिए। किसी पर मालकियत मत करो, क्योंकि जब भी तुम मालकियत करते हो, तो तुम इतना ही दिखाते हो कि तुम भिखारी हो। जब भी तुम मालकियत जमाने की कोशिश करते हो, तो तुम इतना ही दिखाते हो कि तुम उसके मालिक नहीं हो; अन्यथा किसी प्रयास की जरूरत ही नहीं है। तुम मालिक हो। उसके लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
उदाहरण के लिए. तुम किसी व्यक्ति से प्रेम करते हो। यदि तुम उस व्यक्ति पर मालकियत जमाने की कोशिश करते हो, तो तुम प्रेम नहीं करते। और तुम उसके प्रेम के संबंध में भी सुनिश्चित नहीं हो,