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5-आपने एक बार कहा है कि मादक द्रव्य रासायनिक स्वप्न और काल्पनिक अनुभव निर्मित करते है। लेकिन क्या योग-साधना और ध्यान की सब विधियां भी केवल रासायनिक परिवर्तन ही नहीं करती? फिर मादक द्रव्यों में और साधना में क्या फर्क है?
6-सेल्फ-कांशसनेस-जिसे आप एक रोग कहते है-और सेल्फ-अवेयरनेस में क्या फर्क है?
7-श्वास तो अनुभव है, उसे देखेंगे कैसे?
8-क्या साक्षी-भाव एक ठंडी और भाव शून्य घटना होनी चाहिए?
9-आपने कहा: ध्यान है मरने की कला। तो फिर आप ऐसा कुछ क्यों नहीं करते कि हमारी मृत्यु तत्काल घट जाए?
10-कहां से आते है आपके वचन? और आप उनके साथ कैसे संबंधित होते है?
पहला प्रश्न :
कई बार आपके प्रवचनों के दौरान मैं अपनी आंखें खुली नहीं रख पाता और एकाग्र नहीं हो पाता और पता नहीं कहां चला जाता हूं और फिर एक झटके के साथ वापस लौटता हूं। कोई स्मृति नहीं रहती कि मैं कहां रहा। क्या मैं कहीं गहरे उतर रहा हूं या बस नीदं में जा रहा हूं?
मन बहुत सूक्ष्म विद्युत तरंगों द्वारा काम करता है। उस यांत्रिक प्रक्रिया को समझ लेना है। अब
इस दिशा में खोज करने वाले कहते हैं कि मन चार अवस्थाओं में काम करता है। साधारण जाग्रत मन काम करता है अठारह से लेकर तीस आवर्तन प्रति सेकेंड के हिसाब से यह मन की 'बीटा' अवस्था है। अभी तुम उसी अवस्था में हो, जाग्रत अवस्था में, दैनंदिन काम करते हुए।
उससे ज्यादा गहरे में है द्वितीय अवस्था-'अल्फा'| कई बार, जब तुम कुछ नहीं कर रहे होते, निष्क्रिय होते हो-बस विश्राम कर रहे होते हो सागर-तट पर, कुछ नहीं कर रहे होते, संगीत सुन रहे होते हो, या गहरे डूब गए होते हो प्रार्थना में या ध्यान में तब मन की सक्रियता गिर जाती है. अठारह से