Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 392
________________ वह अवस्था कभी नहीं आती जब तुम कह सको, 'अब मैं सीमा तक पहुंच गया हूं।' असल में सीमाएं हैं ही नहीं। इस लिए आस्तित्व में कोई सीमाएं नहीं हैं। बाहर कोई सीमाएं नहीं हैं; अस्तित्व असीम है। तुम्हारे भीतर कोई सीमाएं नहीं हैं। सीमाएं एक झूठ हैं। जितने तुम गहरे उतरते हो, उतना ही असीम आपके पास आता जाता है। लेकिन जब तुम उसमें गहरे उतर जाते हो, उसमें डूब जाते हो तो तुम जानते हो । अब क्षुद्र खो जाता है, क्षणभंगुर खो जाता है, सीमित खो जाता है। अब तुम देखते हो किसी की आंखों में और तुम जानते हो कि असीम - अनंत प्रतीक्षा कर रहा है वहां पहली बार, प्रेम संभव होता है। प्रेम केवल तभी संभव होता है, जब तुम अपनी गहराई को जान लेते हो। केवल परमात्मा जैसे व्यक्ति प्रेम करते हैं, और केवल परमात्मा जैसे व्यक्ति ही प्रेम कर सकते हैं कुत्ते तो केवल लड़ सकते हैं, प्रेम के नाम पर भी वे लड़ेंगे ही। और यदि परमात्मा जैसे व्यक्ति लड़ते भी हैं, तो उनकी लड़ाई में भी प्रेम ही होता है; इससे अन्यथा संभव नहीं है। जब तुम अपने अंतस की भगवता को पहचान लेते हो, तो संपूर्ण अस्तित्व तत्क्षण बदल जाता है। वह फिर वही पुनरुक्ति भरा, रोज-रोज का साधारण सा, पुराना अस्तित्व नहीं रहता। नहीं, उसके बाद कोई चीज साधारण नहीं रहती; हर चीज असाधारण हो जाती है, परम महिमा में रंग जाती है। साधारण कंकड़-पत्थर हीरे हो जाते हैं-वे हीरे हैं। प्रत्येक पत्ता जीवंत हो उठता है अपने चारों तरफ छाए अदभुत जीवन से संपूर्ण अस्तित्व दिव्य हो जाता है। जिस क्षण तुम्हारी अपने अंतस की भगवता से पहचान हो जाती है, तुम हर जगह भगवता को देखने लगते हो वही जानने का एकमात्र ढंग है। संपूर्ण योग एक विधि है. अप्रकट को कैसे उघाड़ें; अपने भीतर के कैसे प्रवेश करें जो हम स्वयं हैं; कैसे स्वयं का साक्षात्कार हो। द्वारों को कैसे खोलें; उस मंदिर में तुम हो, तुम प्रारंभ से ही हो, लेकिन तुमने उसे देखा नहीं है। खजाना तुम साथ हु हो प्रतिपल । हर आती-जाती श्वास के साथ खजाना मौजूद है शायद तुम्हें पता न हो, लेकिन तुमने उसे कभी खोया नहीं है। तुम बिलकुल भूल सकते हो, लेकिन तुमने उसे कभी खोया नहीं है। तुम शायद उसे पूरी तरह भूल चुके हो, लेकिन उसे खोने का कोई उपाय नहीं है- क्योंकि तुम्हीं हो वह । : तो प्रश्न एक ही है उसे कैसे उघाड़ें?' वह ढंका हुआ है; अज्ञान की बहुत पर्तें उसे आच्छादित किए हैं। योग एक एक कदम, धीरे-धीरे, आंतरिक रहस्य में उतरता है। आठ चरणों में योग पूरा करता है खोज को। प्रारंभिक चरण कहलाते हैं बहिरंग योग, बाहरी योग। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार - ये पांच चरण बाहरी योग के रूप में जाने जाते हैं। शेष तीन, अंतिम तीन धारणा, ध्यान, समाधि-ये अंतरंग योग के रूप में, भीतरी योग के रूप में जाने जाते हैं। अब सूत्र.

Loading...

Page Navigation
1 ... 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431