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यदि विधायक है नकारात्मक के कारण और प्रकाश है अंधकार के कारण तो कैसे कोई मालिक हो सकता है और वह भी बिना किसी को गुलाम बनाए?
एक ही उपाय है : तुम अपने मालिक हो जाओ। तब तुम्ही मालिक हो और तुम्ही गुलाम हो। तब
एक अर्थ में तुम गुलाम हो-तुम्हारा शरीर, तुम्हारी इंद्रियां, तुम्हारा मन; और एक अर्थ में तुम मालिक हो-तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सजगता। जहां भी मालिक है, वहां गुलाम भी होगा।
अब तक तुमने खुद मालिक होने की कोशिश की है और अपने आस-पास गुलाम इकट्ठे कर लेने की कोशिश की है। हर कोई यही कोशिश कर रहा है-खुद मालिक होने की और दूसरे को गुलाम बना लेने की। पति कोशिश करता है मालिक होने की और पत्नी को मजबूर करता है गुलाम होने के लिए। और पत्नी भी कोशिश करती है उसके अपने सूक्ष्म, स्त्रैण तरीकों से मालिक होने की और पति को मजबूर करती है गुलाम होने के लिए। भीतर-भीतर एक सूक्ष्म राजनीति चलती रहती है।
तुम्हारे सारे संबंध सूक्ष्म राजनीतियां हैं : कि कैसे दूसरे को गुलाम होने के लिए बाध्य कर देना, ताकि तुम मालिक बन सको।'
ऐसे सारे प्रयास राजनीति का हिस्सा हैं। मैं उस मन को राजनीतिक कहता हं जो स्वयं ही गुलाम हो जाने की कोशिश कर रहा है और दूसरों को गुलाम होने के लिए मजबूर करने की कोशिश रहा है। धर्म एक बिलकुल अलग ही आयाम है : तुम किसी दूसरे को गुलाम होने के लिए मजबूर नहीं करते; फिर भी तुम मालिक होते हो। तुम दोनों होते हो। तुम्हारा शरीर, तुम्हारा स्थूल हिस्सा, तुम्हारा पृथ्वीतत्व गुलाम होता है; तुम्हारा आकाश-तत्व मालिक होता है। एक बुद्ध पुरुष दोनों होता है : मालिक-परम रूप से; और गुलाम–वह भी परम रूप से। यह तुम्हारे अपने गुलाम और तुम्हारे अपने मालिक का मिलन है, और तब कहीं कोई संघर्ष नहीं रह जाता, क्योंकि शरीर तुम्हारी छाया है। जब तुम कहते हो, 'मैं मालिक हूं, तो शरीर तुम्हारा अनुसरण करता है। उसे अनुसरण करना ही पड़ता है, उसके लिए स्वाभाविक है तुम्हारा अनुसरण करना। असल में, जब शरीर मालिक हो जाता है और तुम गुलाम हो जाते हो, तो यह बहुत ही अस्वाभाविक स्थिति है। यह ऐसे ही है जैसे तुम्हारी छाया तुम्हें कहीं ले जा रही हो। तुम किसी खड्डे में गिरेगे, क्योंकि छाया में कोई चेतना नहीं है; छाया सजग नहीं हो सकती। असल में छाया का कोई अस्तित्व ही नहीं है। तुम्हारा शरीर तुम्हें चला रहा है, यही पीड़ा है। जब तुम अपने शरीर को चलाने लगते हो, तो पीड़ा तिरोहित हो जाती है; तुम आनंद, सुख, शाति अनुभव करने लगते हो।