Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 426
________________ नौवां प्रश्न : कैसे कोई झूठी समस्याओं को झूठ की भांति पहचानना सीख सकता है? पहचानना सीखने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सभी समस्याएं झूठी हैं। समस्याएं झूठी ही होती हैं। जब तुम सत्य होते हो, सभी समस्याएं तिरोहित हो जाती हैं। जब तुम झूठ होते हो, हजारों समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जब भी कोई व्यक्ति बुद्ध के पास आता तो वे हमेशा उससे कहते, 'कृपा करके एक वर्ष तक कोई प्रश्न मत पूछो। एक वर्ष मेरे साथ मौन बैठो, मेरे साथ बहो। मुझे तुम्हारे भीतर काम करने दो। बस अपने द्वार-दरवाजे खुले रखो और सूरज की किरणों को भीतर आने दो। एक वर्ष तक कोई समस्या नहीं, कोई प्रश्न नहीं; मौन रहो, ध्यान करो। एक वर्ष बाद तुम पूछ सकते हो।' एक व्यक्ति, कोई जिज्ञासु, एक दिन आया। उसका नाम था मौलंकपत्त, एक बड़ा ब्राह्मण विद्वान; पांच सौ शिष्यों के साथ आया था बुद्ध के पास। निश्चित ही उसके पास बहुत सारे प्रश्न थे। एक बड़े विद्वान के पास होते ही हैं ढेर सारे प्रश्न, समस्याएं ही समस्याएं। बुद्ध ने उसके चेहरे की तरफ देखा और कहा, 'मौलुंकपुत्त, एक शर्त है-यदि तुम शर्त पूरी करो, केवल तभी मैं उत्तर दे सकता हूं। मैं देख सकता हूं तुम्हारे सिर में भनभानते प्रश्नों को। एक वर्ष तक प्रतीक्षा करो। ध्यान करो, मौन रहो। जब तुम्हारे भीतर का शोरगुल समाप्त हो जाए, जब तुम्हारी भीतर की बातचीत रुक जाए, तब तुम कुछ भी पूछना और मैं उत्तर दूंगा। यह मैं वचन देता हूं।' मौलुंकपुत कुछ चिंतित हुआ-स्व वर्ष, केवल मौन रहना, और तब यह व्यक्ति उत्तर देगा; और कौन जाने कि वे उत्तर सही भी हैं या नहीं? तो हो सकता है एक वर्ष बिलकुल ही बेकार जाए। इसके उत्तर बिलकुल व्यर्थ भी हो सकते हैं। क्या करना चाहिए? वह दुविधा में पड़ा था। वह थोड़ा झिझक रहा था ऐसी शर्त मानने में; इसमें खतरा था। और तभी बुद्ध का एक दूसरा शिष्य, सारिपुत्त, जोर से हंसने लगा। वह वहीं पास में ही बैठा था-एकदम खिलखिला कर हंसने लगा। मौलुंकपुत्त और भी परेशान हो गया; उसने कहा, 'बात क्या है? क्यों हंस रहे हो तुम?' सारिपुत्त ने कहा, 'इनकी मत सुनना। ये बहुत धोखेबाज हैं। इन्होंने मुझे भी धोखा दिया। जब मैं आया था-तुम्हारे तो केवल पांच सौ शिष्य हैं-मेरे पांच हजार थे।' वह बड़ा ब्राह्मण पंडित था, देश भर में विख्यात था, अपने ढंग का अनूठा शिक्षक था।'तुम्हारे पास शायद हजारों प्रश्न होंगे-मेरे पास लाखों थे। इन्होंने फुसला लिया मुझे, इन्होंने कहा, साल भर प्रतीक्षा करो। मौन रहो, ध्यान करो, और फिर

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