________________ अब मुझे इसे एक विरोधाभास के रूप में कहने दो. यदि तुम जबरदस्ती स्वतंत्र हो, तो तुम्हारी स्वतंत्रता में भी बंधन है; और यदि तुम समग्र स्वीकार के साथ गुलाम हो, तो तुम्हारे बंधन में भी स्वतंत्रता है। यह निर्भर करता है। यह भीतर के भाव पर निर्भर करता है, परिस्थिति पर नहीं। इसलिए केवल तुम्हीं इस संबंध में जान सकते हो कि वह क्या है। यदि तुम यहां से चले जाना चाहते हो, तो चले जाओ, सहजता से दूर चले जाओ। कोई समस्या मत खड़ी करो! यदि तुम यहां रहना चाहते हो, तो रहो यहां। फिर कोई झंझट मत खड़ी करो। लेकिन तुम उलझे हुए हो; तुम सदा ही द्वंद्व में हो। तुम एक नहीं हो, तुम भीड़ हो–यही मुसीबत है। तुम्हारा एक हिस्सा यहां रहना चाहता है; तुम्हारा दूसरा हिस्सा यहां से दूर चले जाना चाहता है। और जब तुम दूर चले जाओगे, तो एक हिस्सा फिर वापस आ जाना चाहेगा। और ऐसा ही चलता रहता है! तुम्हें अपने भीतर ही निर्णय लेना है। तुम्हें वंद्व को छोड़ना है, भीड़ से बाहर आना है। तुम्हें अखंड होना है। तुम्हारी अखंडता में स्वतंत्रता है, तुम्हारी खंड-खंड अवस्था में बंधन है। जब तुम एक होते हो, तब कोई तुम्हें गुलाम नहीं बना सकता-कोई भी नहीं। तुम्हें जेल में डाला जा सकता है, तुम्हें जंजीरों में जकड़ा जा सकता है, लेकिन तुम्हें गुलाम नहीं बनाया जा सकता। तुम्हारे शरीर को जंजीरों में बांधा जा सकता है. तुम्हारी आत्मा पंख पसार आकाश में उड़ती रहेगी, उसके लिए कोई समस्या न होगी। तुम्हारी प्रार्थना कैसे जंजीरों में बांधी जा सकती है? तुम्हारा ध्यान कैसे बंधन में पड़ सकता है? तुम्हारा प्रेम कैसे गुलाम बनाया जा सकता है? असल में आत्मा की ठीक-ठीक परिभाषा ही यही है कि जिसे जबरदस्ती गुलाम नहीं बनाया जा सकता। लेकिन तुम्हारे पास कोई आत्मा है ही नहीं। तुम तो एक भीड़ हो, इतने लोग भीतर हैं बिना किसी अखंडता के, बिना किसी तालमेल के। यही मुसीबत है। यदि तुम यहां रहते हो, तो तुम बंधन अनुभव करोगे; यदि तुम यहां से चले जाते हो, तो भी तुम बंधन अनुभव करोगे। जहां भी तुम जाओगे, तुम अपना अंतर्दवंदव साथ लिए जाओगे। तो सवाल मेरे पास रहने का या मुझ से दूर होने का नहीं है, उसका कोई सवाल ही नहीं है। सवाल यह है कि यहां रहने में अखंडता आती है या दूर रहने में अखंडता आती है। और मैं कुछ कहता नहीं कि तुम्हें यहां रहना चाहिए या दूर चले जाना चाहिए-मेरे पास कोई 'चाहिए' नहीं है। वह तुम्हारी अपनी बात है। यदि तुम सहजता से बह सकते हो मेरे साथ, तो बहो। यदि तुम्हें लगता है कि मुझ से दूर बह जाना सुंदर होगा, तो दूर बह जाओ। मेरी ओर ध्यान मत देना, अपना पूरा ध्यान अपनी आंतरिक आत्मा पर रखना। जहां वह सहजता से बहती हो, जहां वह अपनी मौज से बहती हो, बिना किसी बाधा के, वही तम्हारी मंजिल है।