________________ यही सदा से बुद्ध पुरुषों का काम रहा है-लोगो को पागल बनाना। क्योंकि समाज ने तुम्हें इतना ज्यादा समझदार बना दिया है कि तुम्हारी समझदारी में तुम करीब-करीब विक्षिप्त ही हो गए हो। तुम इतने सीमित हो गए हो, इतने जीर्ण, एक ही ढर्रे में जड़, बासे, और तुम ऐसी नासमझी की बातें सोचते रहते हो, लेकिन क्योंकि सारा समाज सोचता है कि यह बहुत समझदारी है.। उदाहरण के लिए कोई आदमी निरंतर धन के बारे में सोचता रहता है और तुम उसे समझदार कहते हो। वह नासमझ है, क्योंकि कैसे कोई सच में समझदार व्यक्ति निरंतर धन के बारे में सोच सकता है? और ज्यादा बड़ी चीजें हैं सोचने के लिए। और कोई व्यक्ति निरंतर सोचता रहता है पद-प्रतिष्ठा के संबंध में; सदा उत्सुक रहता है, प्रतीक्षा करता रहता है-लोगो का समर्थन पाने के लिए। वह विक्षिप्त है, क्योंकि समझदार, स्वस्थ-चित्त व्यक्ति तो स्वयं में ही इतना आनंदित होता है कि वह क्यों चिंता करेगा कि लोग उसके बारे में क्या कहते हैं? वह अपना जीवन जीता है, और दूसरों को उनका जीवन जीने देता है। न वह किसी के जीवन में कोई हस्तक्षेप करता है, न वह किसी को अपने जीवन में हस्तक्षेप करने देता है। इस जीवन में बहुत संभावनाएं छिपी हैं, और तुम कंकड़-पत्थर ही बीनते रहते हो। बहुत कुछ संभव है-परमात्मा संभव है-और तुम धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा की भाषा में ही सोचते रहते हो। तुम अपना पूरा जीवन एकदम व्यर्थ की बातों में गंवा देते हो, और तुम सोचते हो कि तुम स्वस्थ-चित्त हो! तुम स्वस्थ नहीं हो। असल में पूरा समाज ही इतना विक्षिप्त है कि स्वस्थ होने के लिए तुम्हें 'विक्षिप्त' होना पड़ेगा; वरना तुम कट जाओगे समाज से। सभी बुद्ध, क्राइस्ट कोशिश करते रहे हैं तुम्हें 'पागल' बना देने की। असल में वे कोशिश कर रहे हैं तुम्हें स्वस्थ, संतुलित बनाने की, लेकिन वह बात पागलपन जैसी मालूम पड़ती है। जब जीसस ने अपने शिष्यों से कहा कि 'जब कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा गाल भी उसके सामने कर देना।' तो यह पागलपन की ही बात है। कौन सुनेगा इस व्यक्ति की? क्या कह रहे हैं वे? जीसस कहते है, 'यदि कोई तुम्हारा कोट छीन ले, तो तुम उसे अपनी कमीज भी दे देना।' पागलपन कोई बात है। लेकिन वे यह कह रहे हैं कि इन बातों का कोई मूल्य नहीं है, इनकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है। कोई तुम्हारा कोट छीन लेता है; हो सकता है वह बहुत कठोर न हो-वह चाहता तो था तुम्हारी कमीज भी ले लेना, लेकिन ले नहीं सका-विनम्र आदमी! तो उसे अपनी कमीज भी दे देना, ताकि बात खतम हो जाए। कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मार देता है. हो सकता है उसमें थोड़ी-बहुत हिंसा अभी भी बाकी हो; उसे उससे भी मुक्त हो जाने दो। उसके सामने दूसरा गाल भी कर दो, ताकि उसके लिए बात खतम हो जाए और वह मुक्त हो जाए-और तुम भी मुक्त हो जाओ।